भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है। यह फैसला कई रणनीतिक कारणों पर आधारित है:
- दक्षिण भारत को साधने की रणनीति: राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं और भाजपा के एक वरिष्ठ नेता हैं। इस कदम से भाजपा दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है, जहां उसकी उपस्थिति अपेक्षाकृत कमजोर है।
- वैचारिक प्रतिबद्धता: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद भाजपा इस पद के लिए एक ऐसे उम्मीदवार को चुनना चाहती थी, जिसकी जड़ें पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में गहरी हों। राधाकृष्णन किशोरावस्था से ही आरएसएस से जुड़े रहे हैं, जो इस चयन का एक प्रमुख कारण है।
- ओबीसी समुदाय का प्रतिनिधित्व: राधाकृष्णन ओबीसी समुदाय से आते हैं। भाजपा इस कदम के माध्यम से ओबीसी वोट बैंक को एक महत्वपूर्ण संदेश देना चाहती है और अपनी सामाजिक समावेशी छवि को मजबूत करना चाहती है।
क्या विपक्ष में आ सकती है दरार?
राधाकृष्णन की उम्मीदवारी से विपक्ष, खासकर ‘इंडिया’ गठबंधन में दरार पड़ने की संभावना है।
- डीएमके के लिए मुश्किल: राधाकृष्णन का तमिलनाडु से होना और ओबीसी समुदाय से आना डीएमके के लिए एक धर्मसंकट पैदा कर सकता है। डीएमके के लिए एक तमिल और ओबीसी नेता का विरोध करना राजनीतिक रूप से कठिन हो सकता है।
- सर्वसम्मत उम्मीदवार का अभाव: विपक्ष में अभी तक किसी भी सर्वसम्मत उम्मीदवार पर सहमति नहीं बन पाई है। इस परिस्थिति में, भाजपा द्वारा एक सर्वमान्य और अनुभवी उम्मीदवार को उतारने से कुछ विपक्षी दलों के लिए उनका समर्थन करना आसान हो सकता है, जिससे ‘इंडिया’ गठबंधन की एकता पर सवाल उठ सकते हैं।
- मतदाताओं को संदेश: भाजपा की यह रणनीति विपक्ष के उस नैरेटिव को कमजोर कर सकती है, जिसमें वह भाजपा को केवल हिंदी भाषी राज्यों की पार्टी के रूप में पेश करती है।