भारतीय राजनीति के आकाश में ध्रुव तारे की तरह चमकने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का सियासी सफर असाधारण रहा है। एक शानदार वक्ता, कुशल प्रशासक और संवेदनशील कवि के रूप में उनकी पहचान ने उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर उठाकर एक युगपुरुष बना दिया था। उनका राजनीतिक जीवन कई उतार-चढ़ावों से भरा था, जिसमें संघर्ष, सत्ता, और ऐतिहासिक निर्णय शामिल थे।
वाजपेयी ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय जनसंघ से की, और बाद में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संस्थापक सदस्यों में से एक बने। उनका एक सबसे यादगार पल तब आया जब वह 1977 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बने। यह वही समय था जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण देकर इतिहास रच दिया था, जिसने भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित किया। वाजपेयी एक प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में उभरे, और उन्होंने इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान सत्ता को कड़ी टक्कर दी। अपनी बेबाकी और संसदीय बहस के लिए उन्हें विरोधी भी सम्मान देते थे।
वाजपेयी ने तीन बार भारत के प्रधानमंत्री का पद संभाला। पहली बार, 1996 में, उन्होंने मात्र 13 दिनों के लिए यह जिम्मेदारी संभाली। बहुमत सिद्ध न कर पाने के कारण उनकी सरकार गिर गई, लेकिन उस छोटे से कार्यकाल ने उनके नेतृत्व की झलक दिखा दी थी। इसके बाद, वह 1998 में दोबारा प्रधानमंत्री बने। यह कार्यकाल कई ऐतिहासिक घटनाओं से भरा था।
उनके दूसरे कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण फैसला मई 1998 में पोखरण-II परमाणु परीक्षण था। इस साहसिक कदम ने भारत को एक परमाणु शक्ति बना दिया, और पूरी दुनिया को चौंका दिया। इस परीक्षण के साथ ही भारत ने अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया।
परमाणु शक्ति बनने के बाद भी, वाजपेयी ने शांति के प्रयासों को कभी नहीं छोड़ा। 1999 में, वह ‘सदा-ए-सरहद’ नामक बस से लाहौर गए और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे ‘लाहौर घोषणा’ कहा जाता है। लेकिन शांति की उनकी कोशिशों को तब गहरा धक्का लगा जब पाकिस्तान ने कुछ ही महीनों बाद भारतीय सीमा में घुसपैठ कर दी। इसके बाद 1999 का कारगिल युद्ध हुआ। वाजपेयी ने दृढ़ता के साथ इस संकट का सामना किया और भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत घुसपैठियों को खदेड़ दिया।
1999 के आम चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए ने भारी बहुमत के साथ वापसी की और उन्होंने तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद संभाला। उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण योजनाएं जैसे कि राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू की गईं।
2004 के आम चुनाव में ‘इंडिया शाइनिंग’ के नारे के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद, उनकी सरकार को हार का सामना करना पड़ा और वह सत्ता से बाहर हो गए। इस चुनाव में मिली हार के बाद, वाजपेयी ने सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे दूरी बना ली।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय राजनीति के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को 27 मार्च 2015 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनके आवास पर जाकर दिया था, जो कि एक विशेष और दुर्लभ सम्मान था, क्योंकि उस समय वाजपेयी जी खराब स्वास्थ्य के कारण सार्वजनिक समारोह में शामिल होने में असमर्थ थे।
वाजपेयी का जीवन एक राजनेता के साथ-साथ एक कवि का भी था, जिनकी कविताएं उनके सिद्धांतों और विचारों को दर्शाती थीं। 16 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और देश के प्रति उनका समर्पण आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है।