आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच दशकों पुराने संघर्ष को खत्म करने के लिए अमेरिका की मध्यस्थता में एक ऐतिहासिक शांति समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत दोनों देशों ने शांति बनाए रखने पर सहमति जताई है। हालांकि, इस समझौते को लेकर क्षेत्रीय शक्तियों की प्रतिक्रियाएं संशय पैदा कर रही हैं।
रूस ने इस समझौते पर अभी तक कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है। मॉस्को, जो इस क्षेत्र में पारंपरिक रूप से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, वह अब अमेरिका की बढ़ती भूमिका से चिंतित है। दूसरी ओर, ईरान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित सीमा गलियारे को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है। ईरान का मानना है कि यह गलियारा उसकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है और क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को बढ़ा सकता है।
इस समझौते का भारत पर भी असर पड़ने की संभावना है। भारत के आर्मेनिया के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। हालांकि, आर्मेनिया भारत का एक पारंपरिक रणनीतिक सहयोगी है। भारत आर्मेनिया को सैन्य उपकरण भी बेचता रहा है।
इस समझौते से भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती खड़ी हो सकती है। अगर यह शांति समझौता सफल होता है, तो इससे इस क्षेत्र में एक नया भू-राजनीतिक समीकरण बन सकता है, जिससे भारत को अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखने में मुश्किल हो सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस नई स्थिति में अपने दोनों सहयोगियों के साथ कैसे संबंध बनाए रखता है।