2014 और 2019 की तरह इस बार के चुनाव में मोदी लहर नहीं है। यही वजह है कि इस बार एनडीए का आंकड़ा 300 से नीचे जाते दिख रहा है। अगर ऐसा हुआ तो नरेंद्र मोदी बहुमत का जुगाड़ तो कर लेंगे, लेकिन वह धमक नहीं होगी, जो भाजपा ने दिखाने का प्रयास किया था। कुल मिलाकर मोदी और भाजपा को जमीनी स्तर पर काम करना होगा। हवा-हवाई और मोदी के भरोसे रहने वाले नेता हार की कगार पर हैं।
उप्र ने चौंकाया, राजस्थान ने जमीन दिखाई
उप्र में तो कम से कम यही होता दिख रहा है, जहां समाजवादी पार्टी भाजपा के पैरों तले जमीन खींचती नजर आ रही है। यहां इंडिया गठबंधन 47 सीटें जीतता नजर आ रहा है। राजस्थान की जनता ने भी भाजपा और एनडीए को जमीन दिखा दी है और यहां इंडिया गठबंधन को दो डिजिट में पहुंचा दिया है। बिहार में भी इंडिया गठबंधन का खाता खुलता दिख रहा है और एनडीए को कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है। मप्र ने जरूर मोदी का साथ दिया है और यहां क्लीन स्वीप की स्थिति है। गुजरात में भी इंडिया गठबंधन की एंट्री हुई है और एक सीट मिलती दिख रही है। हरियाणा में मामला बराबरी का है और यहां कांग्रेस ने बढिय़ा वापसी की है।
कई बड़े नेताओं पर हार का खतरा
जो भाजपा नेता मोदी लहर, मोदी के चेहरे पर चुनाव जीतने का सपना देख रहे थे, वे पीछे नजर आ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पीछे चल रही हैं। केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय और पश्चिम बंगाल से दिलीप घोष पीछे चल रहे हैं। महाराष्ट्र में भी कई बड़े नेता हार का मुंह देखने की कगार पर हैं। यहां इंडिया गठबंधन को 29 सीटों पर बढ़त है। भाजपा को उम्मीद थी कि राम मंदिर की लहर में बेड़ा पार हो जाएगा, लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।