सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मॉनसून ऑफर देकर उप्र के राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल मचा दी है। भले ही उन्होंने यह तीर अंधेरे में चलाया है, लेकिन इसके अपने राजनीतिक मायने भी हैं। दरअसल अखिलेश का यह दांव बीजेपी में फूट डालने के लिए है। दरअसल सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच अनबन की खबरें आती रही हैं। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मौर्य ने कहा कि संगठन, सरकार से बड़ा है। कार्यकर्ता ही गौरव हैं। इससे यह चर्चा होने लगी कि उप्र भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं है। इसके बाद मौर्य ने जेपी नड्डा से मुलाकात की। भूपेंद्र चौधरी भी अमित शाह और नड्डा से मिलने गए। इन्हीं उथलपुथल की खबरों के बीच अखिलेश ने यह ऑफर दिया है। इसके पीछे 10 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव हैं, जिससे पहले अखिलेश मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाना चाहते हैं।
क्या संभव है सरकार बनाना
सवाल यह है कि क्या बीजेपी को तोडक़र सरकार बनाई जा सकती है। अभी बीजेपी के पास 251 विधायक हैं। वहीं सपा के 105 विधायक हैं। 10 सीटें अभी खाली हैं। ऐसे में बहुमत के लिए 197 विधायकों की जरूरत होगी। अगर वाकई मौर्य 100 विधायकों को तोड़ लें तो यूपी में नई सरकार बन सकती है। लेकिन इसमें भी दलबदल के कानून का पेंच फंसेगा, क्योंकि पार्टी तोडऩे के लिए एक तिहाई सदस्यों की जरूरत होती है। भाजपा जैसी कार्यकर्ता आधारित पार्टी के 100 विधायक तोडऩा इतना आसान नहीं है। ऐसे में जब पूर्ण बहुमत की सरकार है तो भाजपा के विधायक आसानी से टूटेंगे नहीं। ऐसे में अखिलेश का यह दावा राजनीतिक उथलपुथल मचाने के लिए ही है और आने वाले चुनाव में बीजेपी को बैकफुट पर धकेलने का प्रयास ही है।