ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एक नए और खतरनाक मोर्चे के रूप में उभर रहा है। AI द्वारा बनाए गए नकली वीडियो, डीपफेक और यहां तक कि वीडियो गेम के फुटेज का इस्तेमाल दोनों देशों और उनके समर्थकों द्वारा तनाव भड़काने और गलत सूचना फैलाने के लिए किया जा रहा है, जिससे जमीनी हकीकत और आभासी दुनिया के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है।
कैसे हो रहा है AI का दुरुपयोग?
- भ्रामक प्रचार और दुष्प्रचार: सोशल मीडिया पर ऐसे कई AI-जनरेटेड वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं, जिनमें झूठे दावे और भ्रामक दृश्य दिखाए जा रहे हैं। ये वीडियो अक्सर सैन्य हमलों, नुकसान या जनता के विरोध को दर्शाते हैं जो वास्तविक नहीं होते, बल्कि AI द्वारा बनाए गए होते हैं या पुराने गेम फुटेज से लिए जाते हैं। इनका मकसद जनता को गुमराह करना और किसी एक पक्ष के नैरेटिव को मजबूत करना होता है।
- भावनात्मक हेरफेर और उकसाना: नकली वीडियो लोगों की भावनाओं को भड़काने, घृणा फैलाने या किसी विशेष पक्ष के प्रति समर्थन जुटाने के लिए बनाए जाते हैं। ये वीडियो अक्सर हिंसक या नाटकीय दृश्यों का उपयोग करते हैं, भले ही वे पूरी तरह से काल्पनिक हों। इसका सीधा असर जनता की धारणा पर पड़ता है और तनाव को और बढ़ाता है।
- डीपफेक का बढ़ता खतरा: AI की मदद से किसी भी नेता, सैनिक या आम नागरिक का नकली वीडियो या ऑडियो बनाया जा सकता है, जिसमें वह कुछ ऐसा कहता या करता हुआ दिखाई देता है जो उसने कभी नहीं किया। इसका इस्तेमाल राजनीतिक हस्तियों को बदनाम करने, अफवाहें फैलाने या यहां तक कि सैन्य खुफिया जानकारी को भ्रमित करने के लिए किया जा रहा है।
- गेम फुटेज का दुरुपयोग: कई बार, हाई-क्वालिटी वाले वीडियो गेम के फुटेज को वास्तविक संघर्षों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ये फुटेज इतने यथार्थवादी होते हैं कि इन्हें पहचानना मुश्किल हो सकता है, जिससे जनता में गलत जानकारी फैलती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि AI-जनित सामग्री की पहचान करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। सरकारों, तकनीकी कंपनियों और मीडिया संस्थानों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि वे इस तरह की सामग्री के प्रसार को कैसे रोकें और जनता को गुमराह होने से बचाएं। यह “नैरेटिव वॉर” वास्तविक संघर्षों को और जटिल बना रहा है।