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    जर्मनी में शोध के बाद जलकुंभी से कागज बनाया.. 150 महिलाओं को दिया रोजगार

    सुस्मिता कृष्णन, 25 साल की एक उद्यमी हैं, जिन्होंने तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में 150 महिलाओं को एक हानिकारक जलीय खरपतवार से टिकाऊ हस्तनिर्मित कागज बनाने का प्रशिक्षण दिया है। उन्होंने जलकुंभी, जो कि झीलों और तालाबों के लिए एक बड़ा खतरा है, को एक मूल्यवान संसाधन में बदल दिया है।

    जलकुंभी, जिसे एक समय केवल एक समस्या माना जाता था, अब सुस्मिता के मार्गदर्शन में महिलाओं के लिए आजीविका का साधन बन गया है। सुस्मिता ने जर्मनी की हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी में अपने शोध के दौरान जलकुंभी से कागज बनाने की एक सस्ती और टिकाऊ विधि विकसित की।

    भारत लौटने के बाद, उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग स्थानीय समुदाय को सशक्त बनाने के लिए किया। उन्होंने 150 से अधिक महिलाओं को जलकुंभी से हस्तनिर्मित कागज बनाने की ट्रेनिंग दी है। इन महिलाओं ने इस कौशल को अपनाकर अपने लिए एक नया रोजगार पैदा किया है। सुस्मिता का मानना है कि यह पहल न केवल पर्यावरण को साफ रखने में मदद करेगी, बल्कि महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बनाएगी।

    सुस्मिता कृष्णन ने जलकुंभी को एक समस्या नहीं बल्कि समाधान में बदल दिया है। उन्होंने जलकुंभी से कागज बनाने का एक सस्ता और टिकाऊ तरीका खोजा है। उनके इस प्रयास से न केवल पर्यावरण को लाभ मिल रहा है, बल्कि यह महिलाओं के लिए रोजगार का एक नया जरिया भी बन गया है।

    जलकुंभी, जो तेजी से फैलने वाला एक जलीय खरपतवार है, देश भर की झीलों और तालाबों के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। यह पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम करता है और जलीय जीवन को नुकसान पहुँचाता है। सुस्मिता कृष्णन, जिन्हें जर्मनी की हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी में शोध के लिए चुना गया था, ने इस समस्या का एक अभिनव समाधान निकाला। उन्होंने जलकुंभी का उपयोग करके कागज बनाने की एक विधि विकसित की।

    सुस्मिता ने अपने इस ज्ञान को दूसरों के साथ साझा करने का फैसला किया। वह अब कॉलेज के छात्रों को जलकुंभी से कागज बनाना सिखा रही हैं। इसके अलावा, उन्होंने 150 से अधिक महिलाओं को इस काम का प्रशिक्षण दिया है। इन महिलाओं के लिए जलकुंभी से कागज बनाना अब आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है।

    सुस्मिता की यह पहल एक प्रेरणादायक कहानी है जो दर्शाती है कि कैसे एक समस्या को एक अवसर में बदला जा सकता है। उनके प्रयासों से जलकुंभी की समस्या का समाधान तो हो ही रहा है, साथ ही यह ग्रामीण और शहरी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त भी बना रहा है। यह पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तिकरण का एक बेहतरीन उदाहरण है।

    सुस्मिता की इस पहल से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिला है, बल्कि इससे सामाजिक और आर्थिक बदलाव भी आए हैं। उनकी कहानी यह दर्शाती है कि एक युवा उद्यमी कैसे अपनी रचनात्मकता और समर्पण से समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। यह एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे एक समस्या को एक अवसर में बदला जा सकता है, जिससे लोगों के जीवन में सुधार हो।

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