राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि “विविधता को स्वीकार करना ही धर्म है और यही परम सत्य है।” भागवत ने अपने संबोधन में हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए कहा कि हमें सभी धर्मों, संस्कृतियों और विचारों का सम्मान करना चाहिए।
भागवत ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां सदियों से विभिन्न धर्मों और विचारों के लोग एक साथ रहते आए हैं। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी ताकत यही है कि हम सभी विविधताओं को स्वीकार करते हैं और उनका सम्मान करते हैं। उन्होंने आगे कहा, “हमारा देश सिर्फ एक भूभाग नहीं, बल्कि एक विचार है। यह विचार सहिष्णुता और सद्भाव पर आधारित है।”
आरएसएस प्रमुख ने इस बात पर भी जोर दिया कि धर्म का अर्थ किसी विशेष पूजा पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक तरीका है। उन्होंने कहा कि “धर्म हमें सिखाता है कि हमें कैसे समाज में रहते हुए दूसरों का भला करना चाहिए। अगर हम दूसरों के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना रखते हैं, तो यही सबसे बड़ा धर्म है।”
भागवत के इस बयान को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह ऐसे समय में आया है जब देश में धार्मिक और सामाजिक सद्भाव को लेकर बहस चल रही है। उनके इस बयान से यह संदेश गया है कि आरएसएस भी सभी धर्मों और समुदायों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने का पक्षधर है। उन्होंने अंत में कहा कि हमें अपनी संस्कृति की इस महान परंपरा को बनाए रखना है, ताकि हमारा देश और मजबूत हो सके।