सनातन धर्म में चैत्र महीने का खास महत्व है क्योंकि इसके 9 दिन में जगतजननी की आराधना की जाती है। चैत्र नवरात्र का पहला दिन हिंदू नववर्ष का माना जाता है। माना यह भी जाता है कि चैत्र के महीने में रोजाना जगतजननी मां दुर्गा की पूजा एवं उपासना की जाती है। चैत्र नवरात्र के दौरान जगत जननी मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा की जाती है। व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। ज्योतिषियों की मानें तो इस वर्ष चैत्र महीने में दो बार दुर्लभ द्विपुष्कर योग का संयोग बन रहा है।
तीन दिन बाद चैत्र माह का शुभारंभ
चैत्र माह की शुरुआत 15 मार्च से हो रही है। 29 मार्च को चैत्र अमावस्या है। इसके अगले दिन से चैत्र नवरात्र की शुरुआत होगी। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 30 मार्च को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी। चैत्र नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना का समय सुबह 06 बजकर 13 मिनट से लेकर 10 बजकर 22 मिनट तक है। अभिजीत मुहूर्त 12 बजकर 01 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 50 मिनट के मध्य भी घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त है।
यह है द्विपुष्कर योग का महत्व
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि यानी 16 मार्च को द्विपुष्कर योग का संयोग है। यह योग दिन में 11 बजकर 44 मिनट से हो रहा है। द्विपुष्कर योग का समापन शाम 04 बजकर 58 मिनट पर होगा। पापमोचनी एकादशी के दिन यानी 26 मार्च को द्विपुष्कर योग का निर्माण हो रहा है। 26 मार्च को ब्रह्म मुहूर्त में 03 बजकर 49 मिनट से लेकर सुबह 06 बजकर 18 मिनट तक है। द्विपुष्कर योग में भगवान विष्णु और जगत की देवी मां दुर्गा की पूजा-उपासना करने से साधक को अमोघ और अक्षय फल की प्राप्ति होगी। ज्योतिषियों की मानें तो द्विपुष्कर योग वृषभ, तुला, धनु और मीन राशि के जातकों के लिए बेहद शुभ रहेगा। इन राशि के जातकों पर जगत की देवी मां दुर्गा की कृपा बरसेगी।