उत्तर प्रदेश के वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर मसान होली मनाई गई है। काशी ज़ोन के डीएसपी गौरव बंसवाल ने मसान होली पर कहा कि आज यहां विश्व प्रसिद्ध मसान की होली खेली जा रही है। इसके पूजन का समय 12 से 1 बजे तक रहा। इसमें नागा साधु परंपरागत रूप से भस्म से होली खेलते हैं। इस होली को देखने के लिए भारी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं। उसी के लिए यहां पुलिस बल तैनात किया गया है। उन्होंने कहा कि यहां लगातार ड्रोन से निगरानी की जा रही है। जब यहां पूजा आरती शुरू होती है तब यहां सबसे ज्यादा भीड़ होती है।
सामान्य होली से अलग है मसान होली
वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर खेली जाने वाली मसान होली एक विशिष्ट और रहस्यमय उत्सव माना जाता है। यह होली सामान्य होली से पूरी तरह अलग है, क्योंकि इसमें रंगों के बजाय चिता की राख से होली खेली जाती है। यह होली फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को खेली जाती है। यह होली वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है, जो कि एक श्मशान घाट है। इस दिन लोग चिता की राख को एक-दूसरे पर लगाते हैं और हर हर महादेव के जयकारे लगाते हैं। अघोरी साधु इस होली में विशेष रूप से भाग लेते हैं। वे चिता की राख को अपने शरीर पर लगाते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। देवाधिदेव महादेव के भक्त चिता भस्म की होली खेलते हैं।
शिव अपने गणों के साथ खेलते हैं होली
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव अपने गणों के साथ श्मशान में होली खेलते हैं। यह उत्सव जीवन की अनित्यता और मृत्यु की अनिवार्यता का प्रतीक है। विद्वानों का मानना है कि यह उत्सव यह भी दर्शाता है कि भगवान शिव के लिए जीवन और मृत्यु दोनों समान हैं। शिवपुराण और दुर्गा सप्तशती में भी मसान की होली का वर्णन किया गया है।
आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है
मान्यता है कि मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली में देव, गंधर्व, किन्नर, नगरवधुएं, भूत-प्रेत, पिशाच, बेताल सहित पूरा संसार ही शामिल होता है। यह होली मृत्यु के भय को दूर करने और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। मसान होली वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मसान होली के कार्यक्रम में प्रवेश प्रतिबंधित है। यह उत्सव वाराणसी की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का एक अनूठा उदाहरण माना जाता है।