उप्र में 1998 में गोरखपुर के कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक सिर चढक़र बोल रहा था। उसका खौफ ऐसा था कि छोटी सी उम्र में ही उसने ऐसा नाम कमाया कि लोग उसके नाम से थर-थर कांपने लगे थे। उस समय प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी। श्रीप्रकाश इतना बेखौफ हो चुका था कि उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह तक की सुपारी ले ली थी। जैसे ही यह बात पुलिस महकमे और सीएम तक पहुंची तो हर कोई सन्न रह गया। आनन-फानन में बैठकों का दौर शुरू हुआ। बताया जाता है कि कल्याण सिंह ने स्पष्ट कहा कि ऐसे अपराधियों का उप्र से सफाया होना चाहिए।
श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके गैंग का खात्मा कर दिया।
श्रीप्रकाश के खात्म के लिए सरकार ने सीतापुर एडीजी अजय राज को लखनऊ बुलाया। सरकार से बात हुई और अजय राय ने 4 मई 1998 को यूपी एसटीएफ की स्थापना की। इसके बाद एसटीएफ ने घेराबंदी शुरू की और कुछ ही दिनों में श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके गैंग का खात्मा कर दिया। एसटीएफ ने उप्र से गैंगवार खत्म किया तो आतंकियों को भी ठिकाने लगाया। ऐसे सफल पुलिस अधिकारी अजय राज शर्मा का मंगलवार को निधन हो गया। उप्र पुलिस मुख्यालय में उन्हें श्रद्धांजलि देकर उनके शौर्य को नमन किया गया।
पीछा कर राजस्थान तक पहुंच गई थी पुलिस
बात 1972-73 की है, जब उप्र के डकैत जंगा और फूला गैंग ने 30 बच्चों का अपहरण कर लिया था। ये बच्चे आगरा और आसपास के बड़े व्यवसायियों के थे। पुलिस ने इन बच्चों को छुड़ाने की ठानी। पुलिस टीम का नेतृत्व तत्कालीन एएसपी अजय राज शर्मा ने किया। पुलिस ने डकैतों को घेरा तो यह मुठभेड़ 22 घंटे तक चली, जो कि उप्र पुलिस के इतिहास में सबसे ज्यादा लंबी मुठभेड़ साबित हुई। इस दौरान पुलिस डकैतों का पीछा करते हुए राजस्थान की सीमा में घुस गई। इस मुठभेड़ में जंगा, फूला सहित गैंग के 13 डकैत मारे गए थे। पुलिस ने तब 30 अपहृत बच्चों को सकुशल मुक्त कराया था। यह सब संभव हुआ था अजय राज शर्मा के नेतृत्व में। इसके बाद अजय राज एसटीएफ का बैकबोन बन गए थे। वे ऐसे आईपीएस अधिकारी थे, जो कभी विवाद में नहीं रहे। वे जितना कल्याण सिंह के करीबी थी, उतने ही मुलायम सिंह से भी उनकी बनती थी। वे दिल्ली के पुलिस कमिश्नर भी रहे।