एआई यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया भर में चर्चा है। अमेरिका और चीन इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाना चाहते हैं। वहीं भारत भी इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाना चाहता है। यही वजह है कि पीएम मोदी इस पर पूरा जोर दे रहे हैं। मोदी सरकार भारत को एआई का हब बनाना चाहती है। गूगल ने भी बीते साल एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें यह अनुमान था कि 2030 तक भारत में एआई को अपनाने से कम से कम 33.8 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है। पीएम मोदी खुद भी भारत को एआई के क्षेत्र में अगुवा बनाने चाहते हैं। इसे भारत के लिए संकटमोचक यानी हनुमान माना जा रहा है, जो हर समस्याओं को सुलझाएगा। प्रधानमंत्री मोदी जानते हैं कि आने वाला वक्त एआई का है, इसीलिए वह भारत को इसका अगुवा बनाना चाहते हैं।
44 हजार करोड़ खर्च करेगा भारत, 1.2 लाख नौकरियां मिलेंगी
अमेरिका और चीन जैसे देशों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर युद्ध जैसे हालात हैं। भारत भी अगले दो सालों में 2027 तक 44 हजार करोड़ रुपए खर्च करने वाला है। भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर में अगले दो सालों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जनरेटिव एआई और एनालिटिक्स में 1.2 लाख नौकरियों के मौके बनेंगे।
भारत समेत कई देशों में 60 फीसदी कंपनियों के पास एआई
भारत, सिंगापुर, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे अग्रणी देशों में 60 फीसदी कंपनियों के पास एआई प्रोजेक्ट चल रहे हैं या पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हैं। स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी, जापान जैसे एआई-पिछड़े देशों में केवल 36 प्रतिशत कंपनियों ने इसी तरह की एआई पहल शुरू की है।

                                    
