कांग्रेस लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी है। पहले हरियाणा के बाद महाराष्ट्र और दिल्ली में उसे हार का सामना करना पड़ा है। महाराष्ट्र और हरियाणा में तो कांग्रेस मजबूत स्थिति में मानी गई थी, लेकिन वहां भी उसे भाजपा से बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। वहीं दिल्ली में कांग्रेस को लगातार तीसरी बार एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन इसके बाद भी उसे इंडिया गठबंधन में बड़ा फायदा मिल सकता है। अब आगे बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस यहां अपना बारगेनिंग पावर दिखाएगी।
सब ने माना, कांग्रेस के कारण मिली हार
इंडिया गठबंधन में शामिल ज्यादातर दलों ने कांग्रेस को ही दिल्ली में हार की वजह बताया है, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस को लगता है कि अब वह सहयोगी दलों के लिए अब भी जरूरी है। दरअसल सभी नेताओं ने कहा कि दिल्ली कांग्रेस को आप से गठबंधन करना था। अगर इसी समीकरण को मान लिया जाए तो इससे बिहार में राजद पर दबाव बढ़ेगा। कांग्रेस ने जिस तरह ताकत दिखाकर आप को हराया है, उससे यह साबित हुआ है कि कांग्रेस को अपने ही सहयोगी दलों को हराने की क्षमता है। इसी कांग्रेस की मोल-भाव की क्षमता बढ़ सकती है। अब तक जो दल कांग्रेस के वजूद पर सवाल उठाते थे और सीट देने से परहेज करते थे, अब वे सोचने पर मजबूर होंगे कि कहीं कांग्रेस उनके लिए हार की वजह न बन जाए। बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं, जहां पर आरजेडी पर कांग्रेस को साथ लेने का दबाव होगा।
उप्र में सपा हुई बेजार
उत्तर प्रदेश में विधानसभा के उपचुनाव हार कर सपा पर भी दबाव बढ़ गया है। अब उसकी मजबूरी होगी कि वह कांग्रेस को साथ में ले और भाजपा से मुकाबला कर पाए। उत्तर प्रदेश में हुए 10 विधानसभा के उपचुनाव में सपा सिर्फ दो पर ही काबिज हो पाई है। मिल्कीपुर की अपनी ही सीट में तो उसे रिकॉर्डतोड़ 61000 से ज्यादा मतों से हार का सामना करना पड़ा है। भले ही इसके लिए सपा ईवीएम, चुनाव आयोग और सरकार को जिम्मेदार ठहराए, लेकिन इतना तय है कि उसे भी कांग्रेस का साथ लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।