भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए अरविंद केजरीवाल ने जेल से छूटते ही मुख्यमंत्री का पद नहीं लिया। उन्होंने अपनी जगह अपनी भरोसेमंद आतिशी को अपना उत्तराधिकारी चुना और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। आतिशी ने भी पद संभालते ही दो कुर्सियां रखीं, जिसमें एक केजरीवाल के लिए थी जबकि दूसरी खुद के लिए। एक तरह से वह खड़ाऊ मुख्यमंत्री ही साबित हुईं। वह खुद भी मानती रहीं कि यह सीट केजरीवाल के लिए ही है। ऐसे में जनता के बीच यह मैसेज किया कि केजरीवाल ने खड़ाऊ या मुखौटा मुख्यमंत्री को सामने लाकर ठीक नहीं किया। इसके बाद चुनाव में खुद के लिए कुर्सी हासिल करने की चाहत भी उन पर भारी पड़ गई।
खुलेआम स्वीकारा, मैं ही बनूंगा मुख्यमंत्री
खुद केजरीवाल ने कई इंटरव्यू में यह कहा कि मुख्यमंत्री तो वही बनेंगे। आतिशी तो सिर्फ कामचलाऊ या वैकल्पिक मुख्यमंत्री हैं। जनता ने उनका यह बड़बोलापन और अति आत्मविश्वास को सही नहीं माना। जनता के बीच यह मैसेज गया कि केजरीवाल सत्ता हासिल करने के लिए वोट मांग रहे हैं। कुल मिलाकर यह विक्टिम कार्ड खेलने का दांव केजरीवाल पर ही उल्टा पड़ गया। जनता ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।
आतिशी के लिए बढ़ा मौका
सीएम आतिशी को अब इस्तीफा देना होगा। बड़े नेताओं में वही जीतकर आई हैं। ऐसे में उनके खाते में नेता प्रतिपक्ष का पद जाना स्वाभाविक लग रहा है। केजरीवाल भी यही चाहेंगे कि एक तरह से मुखौटा नेता ही उनकी पार्टी की अगुवाई करे। बहरहाल आप में अभी असंतोष के स्वर भी उठेंगे, जिन्हें शांत करना केजरीवाल के लिए मुश्किल साबित होगा।