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    देशभक्ति का ज्वार, हिंसा और फांसी.. जानें 103 साल पहले का चौरी चौरा कांड

    देश की स्वाधीनता आंदोलन में चोरी चौरा की घटना महत्वपूर्ण है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे आंदोलन को नई दिशा व ऊर्जा प्रदान मिली तो कुछ का कहना था कि इससे आजादी की आस और लंबी हो गई और देशवासी निराशा के भंवर में फंस गए। बहरहाल आज इस घटना की 103वीं वर्षगांठ है। आज ही के दिन उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में यह घटना हुई थी।

    25 लोगों की हुई थी मौत

    इतिहासकारों का मानना है कि यह घटना देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध आम जनता के प्रबल संघर्ष और अटूट संकल्प की प्रतीक है।चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को सलमान हरसिंहपुरी द्वारा ब्रिटिश भारत में संयुक्त राज्य के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुआ था। असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था। जवाबी कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों ने हमला किया और एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, जिससे उनके सभी पुलिस कर्मी मारे गए। इस घटना के कारण 3 नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई थी। महात्म गांधी हिंसा के घोर विरोधी थे। उन्होंने इस घटना के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में असहयोग आन्दोलन को बंद करने की घोषणा कर दी।

    ऐसे हुई थी घटना

    दो दिन पहले यानि 2 फरवरी 1922 को भगवान अहीर नामक ब्रिटिश भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त सैनिक के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों के साथ गौरी बाज़ार में उच्च खाद्य कीमतों और शराब की बिक्री का विरोध कर रहे थे । स्थानीय दारोगा गुप्तेश्वर सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों ने उन्हें पीट दिया। कई नेताओं को गिरफ्तार कर चौरी-चौरा थाने के हवालात में डाल दिया गया। इसके जवाब में 4 फरवरी को पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया। लगभग 2,000 से 2,500 प्रदर्शनकारी इक_े हुए और चौरी चौरा के बाजार लेन की ओर मार्च करना शुरू किया। वे गौरी बाजार शराब की दुकान पर धरना देने के लिए एकत्र हुए थे कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सशस्त्र पुलिस भेजी गई। प्रदर्शनकारियों ने ब्रिटिश विरोधी नारे लगाते हुए बाजार की ओर मार्च निकाला। भीड़ को डराने और तितर-बितर करने के प्रयास में गुप्तेश्वर सिंह ने अपने 15 स्थानीय पुलिस अधिकारियों को हवा में गोलियां चलाने का आदेश दिया जिससे भीड़ भडक़ गई और पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर, सब-इंस्पेक्टर पृथ्वी पाल ने पुलिस को आगे बढ़ रही भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। इस गोलीबारी में 3 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। अराजकता के बीच भारी संख्या में पुलिस कर्मी वापस पुलिस चौकी में आ गए। गुस्साई भीड़ आगे बढ़ी और पुलिस चौकी में आग लगा दी। इससे इंस्पेक्टर गुप्तेश्वर सिंह सहित अंदर फंसे सभी पुलिसकर्मियों की मौत हो गई।

    मालवीय जी ने 151 लोगों को फांसी से बचाया

    पंडित मदन मोहन मालवीय ने चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुकदमा लड़ा िथा। उन्होंने अधिकांश को बचा लिया जिससे उनकी बड़ी सफलता माना गया। उन्होंने 151 लोग फांसी की सजा से बचा लिया। बाकी 19 लोगों को 2 से 11 जुलाई 1923 के दौरान फांसी दे दी गई। इस घटना में 14 लोगों को आजीवन कैद और 19 लोगों को आठ वर्ष सश्रम कारावास की सजा हुई।

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