दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम प्रयागराज महाकुंभ में साधू-सन्यासियों के पहुंचने का सिलसिला जारी है। इस बीच कई ऐसे साधु-संत भी पहुंच रहे हैं जो आकर्षण का केंद्र हैं। अद्भुत नाम के साथ ये संत-महात्मा लोगों को अपने ओर आकर्षित कर रहे हैं। ऐसे ही हैं श्री महंत इंद्र गिरी जिन्हें लोग ऑक्सीजन बाबा के नाम से जानते हैं। खास बात यह है कि वे अखाड़े के शिविर में एक बिस्तर पर सोए-सोए ही भजन करते हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर उनके सिरहाने रखे रहता है, जिसकी मदद से वह सांस ले पाते हैं। दिनचर्या शिष्यों की मदद से ही पूरी होती है, लेकिन हौसले बुलंद हैं। उनका कहना है कि सुख-दुख तो जीवन का हिस्सा है लेकिन भगवान का भजन नहीं छूटना चाहिए। ऑक्सीजन बाबा महाकुंभ में तीनों शाही स्नान पर डुबकी लगाने की मंशा रखते हैं।
हिसार के बाबा के साथ हुआ था हरिद्वार में हादसा
हरियाणा के हिसार से आए महंत इंद्र गिरी बताते हैं कि मां-बाप की इच्छा पूरी करने के लिए 1980 में महज 8 साल की उम्र में उन्होंने दीक्षा ले ली थी। बात 2021 की है जब वह हरिद्वार कुंभ में पहुंचे थे। इस दौरान इंद्र गिरी अग्नि तपस्या कर रहे थे। बताया जाता है कि इसी दौरान उनके ऊपर ठंडा पानी गिर गया। अग्नि तपस्या के कारण शरीर का तापमान काफी अधिक था और ठंडा पानी गिरने से तापमान अचानक कम हो गया। इस हादसे का सीधा असर उनके फेफड़ों पर पड़ा। सांस लेने में दिक्कत हुई तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। जांच में डॉक्टरों ने बताया कि फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचा है। पहले तो फेफड़े रिकवर करने का प्रयास हुआ, लेकिन बाद में डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद से उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे जिंदगी बितानी पड़ रही है। महंत इंद्र गिरी कहते हैं कि एक पल होने लगा कि उनकी सारी तपस्या मिट्टी में मिल गई लेकिन फिर उन्होंने सोचा-विचारस और इसे भगवान की इच्छा मानकर ऑक्सीजन सिलेंडर के सहारे ही एक सन्यासी की जिंदगी बिताने की ठान ली। इस तरह उनके जीवन के करीब 4 साल बीत गए हैं और अब उन्हें लोग ऑक्सीजन बाबा के नाम से जानने लगे हैं।
1986 में पहली बार हरिद्वार के कुंभ में शामिल हुए थे
हरियाणा के हिसार जिले से आए श्री महंत इंदौर गिरी ने बताया कि हरिद्वार महाकुंभ में हुए इस हादसे के बाद उनके फेफड़ों की छह ऑपरेशन हो चुके हैं, लेकिन कोई सुधार नहीं आया। डॉक्टर ने उन्हें हमेशा ऑक्सीजन सपोर्ट पर ही रहने की सलाह दी है। करीब 4 साल से वह ऑक्सीजन पाइप और सिलेंडर के सहारे ही जीवित हैं। महंत इंद्र गिरी बताते हैं कि वह 1986 में पहली बार हरिद्वार के कुंभ में ही शामिल हुए थे। तब से हर कुंभ और अर्धकुंभ में भाग ले रहे हैं। हालांकि उन्हें चलने-फिरने में समस्या होती है, लेकिन उनके शिष्य उन्हें उठाकर सभी स्थानों पर ले जाते हैं और उनकी अच्छी तरह से सेवा करते हैं। महंत इंद्र गिरी सादगी से जीवन जीते हैं और सादा भोजन करते हैं, जिसमें दाल, रोटी और बिना मसाले की सब्जियां शामिल हैं। उनका कहना है कि माता-पिता की इच्छा से ही वह परिवार की सातवीं पीढ़ी में संत बने हैं।
2013 के प्रयागराज कुंभ में अखाड़े के महंत बनाए गए
उन्होंने बताया कि 2013 के प्रयागराज कुंभ में वह अखाड़े के महंत बनाए गए थे। महंत इंद्र गिरी कहते हैं कि उन्हें सिद्ध गणेश जी पर विश्वास है। सुख-दुख तो जीवन का हिस्सा है लेकिन बचपन से जिस रास्ते पर चले हैं, उससे अलग नहीं हो सकते। यही कारण है कि वह भगवान की भक्ति में डूबे रहते हैं और इसे ही भगवान की इच्छा समझकर आगे का जीवन जी रहे हैं।