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    पाकिस्तान और चीन में पड़ी फूट..इस मुद्दे पर बनी टकराव की स्थिति

    पाकिस्तान और चीन अपने आप को पक्का दोस्त बताते रहे हैं। यहां तक की दोनों खुद को आयरन ब्रदर्स भी कहते रहे हैं, लेकिन अब इन दोनों पक्के दोस्तों में दरार पड़ती दिख रही है। माना जा रहा है कि इसके पीछे अमेरिका की ट्रंप सरकार है, जिसे खुश करने के लिए पाकिस्तान ने चीन को आंखें दिखाना शुरू कर दिया है। दरअसल पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर सीपीसी का अहम हिस्सा ग्वादर बंदरगाह है, जो अब दोनों देशों के संबंध में दरार का कारण बन रहा है।

    पाकिस्तान का दावा, बंदरगाह है हमारा

    पाकिस्तान का कहना है कि पर्याप्त चीनी निवेश से बना बंदरगाह पूरी तरह से उसका है और हम किसी भी विदेशी ताकत को इसे नहीं सौंपेंगे। पाकिस्तान की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज बलूच ने स्पष्ट कर दिया है कि सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए ग्वादर पोर्ट को चीन या अन्य देश को सौंपने की रिपोर्ट पूरी तरह से बेबुनियाद हैं। उन्होंने कहा कि ग्वादर पोर्ट पाकिस्तान के विकास के लिए है। इस बंदरगाह पर किसी और देश का नियंत्रण नहीं होने दिया जाएगा। इस बीच चीन ने ग्वादर पोर्ट के नए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उद्घाटन को तीसरी बार डाल दिया है। चीन ने पाकिस्तान के साथ होने वाली कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को भी टाल दिया है। माना जा रहा है कि यह सब पाकिस्तान की धमकी और सौदेबाजी के कारण हुआ है।

    पाकिस्तान के लिए बोझ बन गया ग्वादर पोर्ट

    पाकिस्तान को ग्वादर पोर्ट के जरिए कर्ज के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ। 2016 में शुरू हो जाने के बाद से ग्वादर एयरपोर्ट से जहाजों का आवागमन न के बराबर है, जबकि ग्वादर पोर्ट को भविष्य का दुबई कहकर विकसित किया गया था। एक साथ शुरू हुए श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह से जहां 2023 में 441 जहाज गुजरे, तो वहीं ग्वादर पोर्ट से मात्र 17 जहाज पूरे साल में गुजरे हैं। पाकिस्तान ने चीनी बैंकों से बंदरगाह के निर्माण के लिए जो लोन लिया था वह फिर से चीनी कंपनियों के जरिए चीन के पास वापस चला गया है। ऐसे में पाकिस्तान के हाथ कर्ज के अलावा कुछ भी नहीं आया। ऐसे में कंगाल पाकिस्तान ने अब चीन को आज दिखाना शुरू कर दिया है।

    अमेरिका को खुश करने के लिए चली चाल

    दरअसल ग्वादर बंदरगाह को लेकर चल रहे गतिरोध को पाकिस्तान की ब्लैकमेल करने वाली नीति माना जा रहा है। वह ग्वादर पोर्ट को चीन को देने से इंकार करके अमेरिका के करीब आना चाहता है। पाकिस्तान का प्रयास है कि आगामी दिनों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका से बेहतर संबंध बनाए जाएं। पाकिस्तान का प्रयास है कि पहले की तरह अमेरिका से फंड हासिल किया जाए, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने ही अपने पिछले कार्यकाल में पाकिस्तान की फंडिंग रोक दी थी। इसके बाद से ही पाकिस्तान भीख का कटोरा लेकर घूम रहा है लेकिन कोई उसकी मदद नहीं कर रहा है। चीन उसकी आर्थिक मदद करता जरूर है लेकिन कर्ज में फंसाकर उसे कंगाल बना रहा है।

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