आज 3 अक्टूबर से शारदेय नवरात्रि का शुभारंभ हो गया है। पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना होती है। घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा का विशेष महत्व है। शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री कहा गया है। माता पार्वती भगवान शंकर की पत्नी हैं और उनका वाहन वृषभ यानी कि बैल है, इसलिए उन्हें वृषभारूढ़ा भी कहते हैं। जो कोई भी श्रद्धा और विधि-विधान से मां शैलपुत्री की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। वैसे तो देवी मां शैलपुत्री का रूप बेहद शांत, सरल, सुशील और दया से भरा है।
मां शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल शोभायमान रहता है। वह नंदी नामक बैल पर सवार होकर पूरे हिमालय पर विराजमान हैं। घोर तपस्या करने वाली मां शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी है और वह रूप व दया की मूर्ति हैं। मां शैलपुत्री की पूजा करने वाले और नवरात्रि के पहले दिन का व्रत करने वाले उपासकों के जीवन में हर प्रकार के कष्ट दूर रहते हैं और विपत्ति काल में मां उनकी रक्षा करती हैं। वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और साधक के मूलाधार चक्र को जागृत करने में मदद करती हैं। मूलाधार चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा का केंद्र है जो हमें स्थिरता और सुरक्षा प्रदान करता है।
11.50 तक है शुभ मुहूर्त
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना में तांबे या मिट्टी के कलश में देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है। कलश को नौ दिन तक पूजा स्थल पर रखा जाता है। घटस्थापना के लिए गंगाजल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रोली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फूल माला, बेलपत्रों की माला और एक थाली में साफ चावल की ज़रूरत होती है। वैदिक पंचांग के अनुसार घटस्थापन के लिए आज शुभ मुहूर्त है। घरों और पंडालों में सुबह 9.40 से 11.50 तक भगवती की पूजा कर सकते हैं।
यह है मां शैलपुत्री पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर, साफ कपड़े पहनकर और मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करके पूजा शुरू करें।
- चौकी पर गंगाजल छिडक़कर उसे शुद्ध करें और फिर उस पर मां दुर्गा की मूर्ति, तस्वीर या फोटो स्थापित करें। पूरे परिवार के साथ विधि-विधान से कलश स्थापना करें।
- घट स्थापना के बाद, मां शैलपुत्री के ध्यान मंत्र जप करें और नवरात्रि के व्रत का संकल्प लें।
- मां दुर्गा की पहली शक्ति, मां शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है। इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है।
- माता को कुमकुम अर्पित करें और सफेद, पीले या लाल फूल चढ़ाएं। माता के सामने धूप और दीप जलाएं। पांच देसी घी के दीपक भी जलाएं। इसके बाद माता शैलपुत्री की आरती उतारें।
- माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें। परिवार के साथ माता के जयकारे भी लगाएं।
- माता को भोग (सफेद फूल, वस्त्र और मिठाई) लगाकर पूजा संपन्न करें। शाम के समय की पूजा में भी माता की आरती करें और मंत्र जप व ध्यान करें।