छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर बलिदानी गोंड राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह को 18 सितंबर को पुण्यतिथि पर नमन किया। साय ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों के अत्याचार और गुलामी विरुद्ध आवाज उठाई और अपना बलिदान देकर मध्य भारत में आजादी की अलख जगाई। साय ने कहा कि राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। उनकी अमर बलिदान गाथा चिरकाल तक भारतीयों को गर्व, गौरव और स्वाभिमान की अनुभूति कराती रहेगी।
यातनाएं झेलीं, देशभक्ति पर आंच नहीं आने दी
राजा शंकर शाह जबलपुर, मध्यप्रदेश के गोंड राजवंश के शासक थे और वे वीरांगना रानी दुर्गावती के वंशज थे। राजा शंकर शाह का शासन क्षेत्र मध्य प्रदेश के जबलपुर, मंडला और उसके आसपास के क्षेत्रों तक फैला था। उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह भी अपने पिता की तरह वीर और स्वराज प्रेमी थे। राजा शंकर शाह ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई थी। उन्होंने अपने पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंक दिया। उन्होंने कविताओं और गीतों के माध्यम से जन-जागरण किया और जनता को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इस बीच उनकी गुप्त योजनाओं की भनक अंग्रेजों को लग गई। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को अंग्रेजी सरकार ने धोखे से 14 सितंबर 1858 को गिरफ्तार कर लिया। उन पर अंग्रेजों के खिलाफ षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया और चार दिन तक कई प्रकार की यातनाएं दी गईं। आखिरकार 18 सितंबर 1858 को जबलपुर की कोतवाली के सामने सार्वजनिक रूप से दोनों वीरों को तोप के मुँह से बांधकर उड़ा दिया गया। इस प्रकार दोनों ही वीर देश के नाम शहीद हो गए लेकिन अपनी देशभक्ति पर अडिग रहे और अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके।