पुणे: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि “हम भगवान बनेंगे या नहीं, यह लोग तय करेंगे। हमें यह प्रचार नहीं करना चाहिए कि हम भगवान बन गए हैं।” भागवत की यह टिप्पणी मणिपुर में 1971 में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने वाले शंकर दिनकर काणे के काम की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में की गई।
भागवत ने कहा कि कुछ लोग सोचते हैं कि आरएसएस को बिजली की तरह चमकना चाहिए, लेकिन बिजली गिरने के बाद पहले से भी ज्यादा अंधेरा हो जाता है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे दीये की तरह जलें और जरूरत पड़ने पर चमकें।
मणिपुर की वर्तमान स्थिति पर बोलते हुए भागवत ने स्वीकार किया कि वहां की परिस्थितियाँ “कठिन” और “चुनौतीपूर्ण” हैं। उन्होंने कहा कि मणिपुर में दो समुदायों के बीच संघर्ष में 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं।
आरएसएस प्रमुख ने उल्लेख किया कि ऐसे कठिन समय में संघ के स्वयंसेवक राज्य में मजबूती से तैनात हैं। उन्होंने कहा, “मणिपुर में सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। स्थानीय लोग अपनी सुरक्षा को लेकर सशंकित हैं। व्यवसाय या सामाजिक कार्य के लिए वहां गए लोगों के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है।”
भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक हिंसा के बीच राज्य से नहीं भागे और जीवन को सामान्य बनाने तथा दोनों समूहों के बीच गुस्से को कम करने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि “एनजीओ सब कुछ नहीं संभाल सकते, लेकिन संघ जो कर सकता है, उसमें कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। वे संघर्ष में शामिल सभी पक्षों के साथ बातचीत कर रहे हैं और परिणामस्वरूप, उन्होंने लोगों का विश्वास प्राप्त किया है।”
कार्यक्रम में भागवत ने शंकर दिनकर काणे के शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों की सराहना की और संघ के स्वयंसेवकों की समर्पण भावना को मान्यता दी।