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    योगी ने बढ़ा दी मोदी के लिए मुश्किल,सामने आ गई सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा

    देश के सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश में साल 2017 में मुख्यमंत्री बनते ही योगी आदित्यनाथ ने कई बड़े फैसले लिए थे। इनमे से ही एक फैसला था शहरो और कई प्रमुख स्थानों के नाम बदलने का जिसने भाजपा और सीएम योगी को जमकर विवादों में घेरा था। तब योगी आदित्यनाथ पर तंज कसते हुए विपक्षी नेताओ ने उन्हें नामकरण वाले बाबा कहकर पुकारना शुरू कर दिया था।

    लेकिन 7 साल बाद अब एक बार फिर से योगी आदित्यनाथ विवादों में आ गए हैं। लेकिन इस बार हंगामा नाम हटाने से नहीं बल्कि नाम लगाने के आदेश से खड़ा हो गया है।

    कांवड़ यात्रा पर योगी का अजीबोगरीब फैसला

    योगी सरकार ने सूबे में होने वाली कांवड़ यात्रा को लेकर हैरान कर देने वाला फैसला लिया है। मुख्यमंत्री योगी ने कांवड़ यात्रियों के लिए पूरे उत्तर प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर खाद्य पदार्थों की दुकानों पर ‘नेमप्लेट’ लगाने का आदेश दिया है। योगी सरकार ने अपने इस फैसले को बड़ा बताते हुए कहा है कि यह कांवड़ यात्रियों की आस्था की पवित्रता बनाए रखने के लिए लिया गया है। साथ यह ही हलाल सर्टिफिकेशन वाले उत्पाद बेचने वालों पर भी कार्रवाई का निर्देश दिया गया है।

    मुजफ्फरनगर का आदेश और हंगामा

    इससे एक दिन पहले ही मुजफ्फरनगर के प्रशासन ने ऐसा आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ ही हंगामा शुरू हो गया था। विपक्षी नेताओ ने इस आदेश को तुरंत वापस लेने की मांग भी की थी। वहीँ दबाव बनता देख मुजफ्फरनगर का प्रशासन बैकफुट पर आता दिखा था और आदेश को सभी के लिए अनिवार्य नहीं किया था। इसके बाद लगा कि मामला यही ठंडा पड़ जायेगा. लेकिन अब एक जिले के बजाय योगी सरकार ने इस फैसले को पूरे प्रदेश में लागू कर दिया है।

    धार्मिक भेदभाव का आरोप

    कांवड़ यात्रियों के रास्त्रो पर पड़ने वाली दुकानों में नेमप्लेट लगाने वाले योगी सरकार के इस फैसले को धार्मिक भेदभाव के नजरिये से देखा जा रहा है। इस फैसले की आलोचना करने वाले विपक्षी नेताओ का कहना है कि यह फैसला इसलिए लिया गया है कि ताकि कांवड़ यात्रियों को यह पता लग सके कि दुकानदार हिन्दू है या मुस्लिम। विपक्षी नेताओ ने कहा कि यह फैसला पूरी तरह से मजहबी है और देश के संविधान के खिलाफ है।

    सहयोगी दलों की नाराजगी

    विपक्ष किसी फैसले के खिलाफ आवाज उठाये या उसका विरोध करें तो इसे तब भी राजनीति के आयने से देखा जा सकता है। अमूमन विपक्ष तो अब सरकार के सही फैसलों पर भी कई बार केवल राजनीतिक फायदे के लिए विरोध करता ही रहता है। लेकिन योगी सरकार के इस फैसले पर तो उनकी अपनी ही पार्टी के सहयोगी दल घेरने लग गए हैं। एनडीए के कई दलों ने इस फैसले को अनुचित बताते हुए इसे वापस लेने की मांग तक कर दी है।

    जेडीयू का कड़ा रुख

    इनमे जेडीयू की तरफ से आया बयान सबसे बड़ा माना जा रहा है। जेडीयू प्रवक्ता किसी त्यागी कहते हैं कि “इससे बड़ी कांवड़ यात्रा बिहार में निकलती है वहां इस तरह का कोई आदेश नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की जो व्याख्या भारतीय समाज, NDA के बारे में है- ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’, यह प्रतिबंध इस नियम के विरुद्ध है। बिहार में नहीं(आदेश) है, राजस्थान से कांवड़ गुजरेगी वहां नहीं है। बिहार का जो सबसे स्थापित और झारखंड का मान्यता प्राप्त धार्मिक स्थल है वहां नहीं है। इसपर पुनर्विचार हो तो अच्छा है।”

    आरएलडी की नाराजगी

    सिर्फ जेडीयू ही नहीं बल्कि जयंत चौधरी की आरएलडी ने भी योगी के फैसले पर नाराजगी जताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। आरएलडी के यूपी प्रमुख रामाशीष राय ने ट्वीट कर कहा है कि “दुकानदारों को अपनें दुकान पर नाम लिखनें का प्रशासन का निर्देश अनुचित है प्रशासन को इसे वापस लेना चाहिए।

    मोदी की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

    हालाँकि यह पहला मौका नहीं है जब योगी सरकार का कोई आदेश इस तरह विवादों में आया हो। लेकिन मौजूदा सियासत पूरी तरह बदल चुकी है। योगी सरकार का यह फैसला अगर ज्यादा गर्माता है तो लखनऊ से निकला यह आदेश दिल्ली में मुश्किल पैदा कर सकता है। जिस लिहाज से नीतीश बाबू की पार्टी जेडीयू की तरफ से इस फैसले को सीधे पीएम मोदी के नारे सबका साथ सबका विकास और सबके प्रयास को याद दिलाते हुए एनडीए की विचारधारा की दुहाई दी गई है। उससे साफ़ झलक रहा है कि जेडीयू ने योगी सरकार को इशारा कर दिया है कि दिल्ली में मोदी सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि इस वक्त वे एनडीए के प्रधानमंत्री हैं न कि पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार के।

    पीएम मोदी की अग्नि परीक्षा

    वहीँ अब यह पहला मौका होगा जब पीएम मोदी की ताकत की अग्नि परीक्षा भी सामने आएगी। पिछले दो बार से भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में थी। तब भाजपा को ऐसे फैसले लेने से पहले सहयोगी पार्टियों से विचार नहीं करना पड़ता था। लेकिन इस बार खुदसे सरकार न बना पाने के कारण मोदी सरकार को कमजोर बताया जा रहा है।

    मजबूत या मजबूर,करना होगा साबित

    अब 240 सीटों के साथ लोकसभा में पहुंचे पीएम मोदी को यह बात याद दिलानी शुरू कर दी गई है कि आपको प्रधानमंत्री बनाने में जेडीयू की भी 12 सीटों का साथ है। ऐसे में अब पीएम मोदी भी को अपनी मजबूती साबित करके दिखानी होगी। अगर योगी सरकार एनडीए दलों की नाराजगी के बाद इस फैसले को वापस लेती है तो इसे सीधे पीएम मोदी की कमजोर होती ताकत से जोड़कर देखा जायेगा। वहीँ फैसला अगर बरक़रार रहता है तो साफ़ हो जायेगा कि भाजपा मजबूती के साथ अपने फैसले लेगी और सत्ता गंवाने के नहीं डरेगी।

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