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    आरएसएस-बीजेपी फिर होंगे साथ-साथ.. सीएम योगी का भी बढ़ेगा कद

    लोकसभा चुनाव के दौरान नड्डा के बयान से उपजी आरएसएस की नाराजगी जल्द ही खत्म हो सकती है। अकेले दम पर 240 सीटें जीतने वाली भाजपा को समझ में आ गया है कि बिन संघ सब सून है। ऐसे में यह तय है कि बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष आरएसएस की पसंद का होगा। वह नेता ऐसा होगा जो सरकार की जी-हुजूरी नहीं बजाएगा। अपने निर्णय खुद लेगा। यानि अब तक भाजपा में जो वन मैन आर्मी की स्थिति थी, वह नहीं रहेगी। अभी तक मोदी-शाह ही सारे निर्णय लेते थे, लेकिन अब तीसरा पॉवर सेंटर भी होगा। आरएसएस 2004 में हार के बाद नितिन गडकरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा चुका है। वहीं उप्र के सीएम योगी आदित्यनाथ का भी कद बढ़ सकता है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ उनकी बंद कमरों में हुई मीटिंगों से यही इशारा मिल रहा है।

    मोदी की भी मजबूरी है संघ

    मोदी जब 2014 में पीएम पद के उम्मीदवार बने थे, तो आरएसएस ने उनका सपोर्ट किया था। संघ कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव जाकर मोदी का ऐसा आभामंडल बनाया कि भाजपा 272 के पार हो गई। 2019 के चुनाव में भी राम मंदिर का फैसला होने और पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक को संघ ने जन-जन तक पहुंचाया। यही वजह रही कि बीजेपी 300 सीटें पार कर गई। लेकिन 2024 में भाजपा को घमंड आया और नड्डा ने कह दिया कि हम खुद के बलबूते जीत जाएंगे। नतीजे आए तो बीजेपी 240 पर सिमट गई। ऐसे में भाजपा नेतृत्व के होश भी ठिकाने आ गए।

    मोदी खुद को साबित करना चाहेंगे

    अब इस वर्ष महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में चुनाव होने हैं। अगले वर्ष दिल्ली-बिहार में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भाजपा और मोदी खुद को साबित करना चाहेंगे। अब अगर आरएसएस ने हाथ खींचे तो भाजपा यहां सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगी। ऐसे में मोदी भी चाहेंगे कि उन्हें आरएसएस का सपोर्ट मिले। हालांकि आरएसएस की यह भी इच्छा है कि संगठन/सरकार में नई पीढ़ी भी सामने आए, जो कि 10 सालों में नहीं हो पा रहा है।

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