30 दिसंबर 2025 की सुबह बांग्लादेश की राजनीति के एक बड़े अध्याय का अंत हो गया। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की अध्यक्ष खालिदा जिया का 80 वर्ष की आयु में ढाका के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे लंबे समय से लिवर सिरोसिस, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों से जूझ रही थीं।
खालिदा जिया का जीवन एक साधारण गृहिणी से लेकर देश की सबसे शक्तिशाली महिला बनने तक के असाधारण सफर की कहानी है।
प्रारंभिक जीवन और विवाह
खालिदा जिया (जन्म नाम: पुतुल) का जन्म 15 अगस्त 1945 को अविभाजित भारत के जलपाईगुड़ी (अब पश्चिम बंगाल) में हुआ था। 1959 में महज 15 साल की उम्र में उनका विवाह पाकिस्तानी सेना के कैप्टन जियाउर रहमान से हुआ। जियाउर रहमान बाद में बांग्लादेश की स्वतंत्रता की लड़ाई के नायक बने और 1977 में देश के राष्ट्रपति पद की शपथ ली।
पति की हत्या और राजनीति में प्रवेश
खालिदा जिया ने कभी राजनीति में आने का मन नहीं बनाया था। लेकिन 30 मई 1981 को एक सैन्य तख्तापलट के दौरान उनके पति जियाउर रहमान की हत्या कर दी गई। इस घटना ने उन्हें गहरे सदमे में डाल दिया, लेकिन बिखरती हुई पार्टी (BNP) को संभालने के लिए उन्हें बाहर निकलना पड़ा। 1982 में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ली और 1984 में इसकी निर्विरोध अध्यक्ष चुनी गईं।
लोकतंत्र के लिए संघर्ष और सैन्य शासन का विरोध
1980 के दशक में उन्होंने सैन्य तानाशाह हुसैन मुहम्मद एर्शाद के शासन के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया। वे ‘आयरन लेडी’ के रूप में उभरीं और अपने आंदोलनों के दौरान सात बार जेल गईं। 1990 के जन-आंदोलन के बाद जब एर्शाद की सत्ता गिरी, तब 1991 के ऐतिहासिक चुनावों में उन्होंने अपनी पार्टी को जीत दिलाई और बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
शासन और उपलब्धियां
खालिदा जिया तीन बार (1991–1996, 1996 और 2001–2006) प्रधानमंत्री पद पर रहीं। उनके कार्यकाल की प्रमुख उपलब्धियां निम्नलिखित रहीं:
- शिक्षा सुधार: प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और मुफ्त बनाया।
- महिला सशक्तिकरण: ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के लिए 10वीं तक की शिक्षा मुफ्त की और छात्रवृत्ति कार्यक्रम शुरू किए।
- आर्थिक नीतियां: निर्यात और औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया।
‘बैटल ऑफ बेगम्स’ और पतन
बांग्लादेश की राजनीति पिछले तीन दशकों से ‘बैटल ऑफ बेगम्स’ यानी खालिदा जिया और शेख हसीना के बीच की प्रतिद्वंद्विता के इर्द-गिर्द घूमती रही। 2018 में भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें सजा सुनाई गई, जिसके बाद से वे राजनीति से काफी हद तक दूर हो गईं। हालांकि, 2024 में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था।
खालिदा जिया का निधन न केवल एक पार्टी के नेता का अंत है, बल्कि बांग्लादेश के एक पूरे राजनीतिक युग का समापन है।


