सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वत श्रृंखला में खनन और उसकी परिभाषा से जुड़े अपने 20 नवंबर के आदेश पर सोमवार को अंतरिम रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत, जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने इस मामले में स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ किया कि अरावली की परिभाषा को लेकर और अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है।
फैसले के मुख्य बिंदु
- पुराने आदेश पर स्टे: सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 के उस आदेश को ‘स्थगित’ (Abeyance) कर दिया है, जिसमें अरावली पहाड़ियों की एक नई परिभाषा स्वीकार की गई थी।
- नई उच्च-स्तरीय समिति: कोर्ट ने इस संवेदनशील मुद्दे की जांच के लिए डोमेन विशेषज्ञों की एक नई हाई-पावर्ड कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह समिति अरावली की भौगोलिक सीमा और खनन के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करेगी।
- 21 जनवरी को अगली सुनवाई: कोर्ट ने केंद्र सरकार और चारों संबंधित राज्यों (राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अब इस मामले की अगली विस्तृत सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी।
विवाद की जड़: 100 मीटर की ऊंचाई का फॉर्मूला
पिछले आदेश में अरावली की परिभाषा को लेकर एक कमेटी की सिफारिश मानी गई थी, जिसके अनुसार केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचे भू-भाग को ही ‘अरावली पहाड़ी’ माना जाना था।
- संरक्षण क्षेत्र में कमी: विशेषज्ञों और विपक्षी दलों का तर्क है कि इस नई परिभाषा से अरावली की लगभग 90% पहाड़ियां संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी।
- खनन को बढ़ावा: 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों पर खनन और निर्माण कार्यों का रास्ता खुल सकता है, जिससे दिल्ली-NCR में धूल भरी आंधियां बढ़ सकती हैं और जलस्तर गिर सकता है।
- पारिस्थितिक विरोधाभास: कोर्ट ने भी माना कि 100 मीटर के इस मानदंड से “संरचनात्मक विरोधाभास” पैदा हो सकता है, जिससे गैर-अरावली क्षेत्रों का दायरा बढ़ जाएगा और अनियमित खनन को बल मिलेगा।
केंद्र सरकार का रुख
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पिछले आदेश को लेकर कई गलतफहमियां पैदा हुई हैं। उन्होंने कोर्ट के दखल का स्वागत किया। गौरतलब है कि विरोध को देखते हुए हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अरावली क्षेत्र में नई माइनिंग लीज पर पहले ही रोक लगाने के निर्देश दिए थे।
अदालत की टिप्पणी: “एक निष्पक्ष और स्वतंत्र विशेषज्ञ की राय आवश्यक है ताकि अरावली की परिभाषा और रेंज को लेकर चल रही अस्पष्टता को दूर किया जा सके और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो।”


