अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए भारी टैरिफ (आयात शुल्क) के बावजूद, नवंबर 2025 के व्यापारिक आंकड़े भारत के पक्ष में एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की ‘टैरिफ नीति’ भारत के खिलाफ उम्मीद के मुताबिक असरदार नहीं रही है, क्योंकि इस दौरान अमेरिका को होने वाले निर्यात में जबरदस्त उछाल देखा गया है।
निर्यात के आंकड़े: 10 साल का रिकॉर्ड टूटा
नवंबर 2025 में भारत का कुल मर्चेंडाइज निर्यात (Merchandise Exports) 38.13 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह पिछले 10 वर्षों में किसी भी नवंबर महीने का सबसे ऊंचा स्तर है।
- अमेरिका को निर्यात: 50% तक के उच्च टैरिफ के बावजूद, अमेरिका को होने वाले निर्यात में 22.6% की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो करीब 7 अरब डॉलर रहा।
- कुल वृद्धि: पिछले साल की तुलना में भारत के कुल निर्यात में करीब 19.4% की वृद्धि हुई है।
- व्यापार घाटा: भारत का व्यापार घाटा भी कम होकर 24.53 अरब डॉलर रह गया, जो अक्टूबर में 41.7 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था।
टैरिफ के फेल होने की प्रमुख वजहें
टैरिफ की चुनौतियों के बीच इस वृद्धि के पीछे कई रणनीतिक और आर्थिक कारण रहे हैं:
1. सेक्टोरल मजबूती और छूट
इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा जैसे सेक्टर्स, जिन्हें टैरिफ से कुछ राहत मिली है, ने शानदार प्रदर्शन किया:
- इलेक्ट्रॉनिक गुड्स: 39% की भारी वृद्धि।
- इंजीनियरिंग गुड्स: 23.8% की बढ़त।
- ड्रग्स और फार्मा: 20.9% की वृद्धि।
- फूड आइटम्स: अमेरिका ने चाय, कॉफी और मसालों जैसे खाद्य पदार्थों को छूट की श्रेणी में रखा, जिससे इनके निर्यात में भी उछाल आया।
2. रुपये में गिरावट
दिसंबर की शुरुआत में रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होकर 90 के पार (90.79) चला गया। कमजोर रुपये ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय सामानों को सस्ता और प्रतिस्पर्धी बना दिया, जिससे निर्यातकों को टैरिफ के बोझ को सहने में मदद मिली।
3. बाजार विविधीकरण (Diversification)
भारतीय निर्यातकों ने केवल अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय अन्य देशों की ओर रुख किया है:
- चीन: चीन को होने वाले निर्यात में 90% की अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई।
- यूरोपीय संघ: जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों में भी भारतीय मांग बढ़ी है।
4. लागत वहन करने की रणनीति
कई भारतीय निर्दोष इस उम्मीद में टैरिफ की बढ़ी हुई लागत खुद वहन कर रहे हैं कि भारत और अमेरिका के बीच जल्द ही एक ‘ट्रेड डील’ हो जाएगी। वे बाजार में अपनी पकड़ नहीं छोड़ना चाहते।
क्या यह सफलता स्थायी है?
हालांकि नवंबर के आंकड़े उत्साहजनक हैं, लेकिन कुछ चिंताएं अभी भी बनी हुई हैं:
- नए ऑर्डर्स में कमी: कई निर्यातकों का कहना है कि वे पुराने ऑर्डर्स पूरे कर रहे हैं और टैरिफ के कारण नए ऑर्डर्स मिलने में कठिनाई हो रही है।
- प्रतिस्पर्धा: वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देश उन क्षेत्रों में भारत की जगह ले रहे हैं जहाँ टैरिफ का असर ज्यादा है (जैसे टेक्सटाइल)।


