भारत और बांग्लादेश के बीच राजनयिक तनाव एक बार फिर गहरा गया है। एक बांग्लादेशी राजनीतिक नेता द्वारा भारत को दी गई कथित धमकी के बाद, भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने कड़ा रुख अपनाते हुए बांग्लादेश के उच्चायुक्त (High Commissioner) को तलब किया है। यह पूरा विवाद बांग्लादेश के एक प्रभावशाली राजनीतिक नेता के उस बयान के बाद शुरू हुआ, जिसे भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के खिलाफ माना जा रहा है। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए स्पष्ट संदेश दिया है कि इस तरह की बयानबाजी द्विपक्षीय संबंधों के लिए हानिकारक है।
क्या है पूरा मामला?
हाल ही में बांग्लादेश के नेशनल सिटीजन पार्टी के नेता हसनत अब्दुल्ला की ओर से जनसभा के दौरान भारत के संदर्भ में विवादित और धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल किया था। इस बयान के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियों और विदेश मंत्रालय ने इसका संज्ञान लिया। नेता ने पूर्वोत्तर भारत को भारत से अलग करने में अलगाववादी ताकतों को मदद करने की चेतावनी दी थी।
- नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेशी उच्चायुक्त को बुलाकर इस मामले पर ‘डीमार्शे’ (Diplomatic Protest) जारी किया।
- भारत ने बांग्लादेश सरकार से मांग की है कि वह अपने देश के भीतर भारत-विरोधी तत्वों पर लगाम लगाए और यह सुनिश्चित करे कि बांग्लादेश की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नफरत फैलाने या धमकी देने के लिए न हो।
तनाव के प्रमुख कारण
पिछले कुछ समय से भारत और बांग्लादेश के संबंधों में कई मुद्दों को लेकर खिंचाव देखा जा रहा है:
- बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों (विशेषकर हिंदुओं) पर हो रहे हमलों और इस्कॉन (ISKCON) से जुड़े विवादों को लेकर भारत पहले ही चिंता व्यक्त कर चुका है।
- भारत का मानना है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें सक्रिय हो रही हैं, जो दोनों देशों के दशकों पुराने मैत्रीपूर्ण संबंधों को बिगाड़ने की कोशिश कर रही हैं।
- बांग्लादेशी नेताओं द्वारा घरेलू राजनीति के लिए भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काना भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है।
भारत का रुख
विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारत हमेशा बांग्लादेश के साथ स्थिर और सहयोगात्मक संबंध चाहता है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और मर्यादा से समझौता नहीं किया जाएगा। बांग्लादेशी दूत को यह भी बताया गया कि ऐसी धमकियां न केवल उकसावे वाली हैं, बल्कि ये दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय शांति के लिए भी खतरा हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही वहां की राजनीति में भारत-विरोधी स्वर तेज हुए हैं। अब यह देखना होगा कि बांग्लादेश सरकार भारत की इस कड़ी आपत्ति पर क्या कार्रवाई करती है।


