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    भारत कभी अमेरिका के आगे झुकेगा; पुतिन की यात्रा ने दिए संकेत

    रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया भारत यात्रा ने अमेरिका में भू-राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान खींचा है। अमेरिकी विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन (Michael Kugelman) ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि यह यात्रा स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि भारत, अमेरिका के दबाव में आकर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को छोड़ने या उसके आगे झुकने नहीं जा रहा है। कुगेलमैन ने इस यात्रा के निहितार्थों (implications) और आगे की वैश्विक रणनीति पर प्रकाश डाला।


    पुतिन की यात्रा का मुख्य संदेश

    कुगेलमैन, जो कि एशिया मामलों के एक प्रमुख विशेषज्ञ हैं, ने कहा कि पुतिन का भारत दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण था:

    • यह यात्रा भारत की उस मजबूत इच्छाशक्ति को दिखाती है कि वह रूस के साथ अपने पुराने और गहरे संबंधों को बनाए रखेगा, भले ही अमेरिका और पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हों। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह केवल एक पश्चिमी या अमेरिकी खेमे का सदस्य नहीं है।
    • दोनों देशों ने यात्रा के दौरान ऊर्जा (Energy) और रक्षा (Defence) व्यापार पर खास ध्यान दिया। अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदना जारी रखा।

    रक्षा संबंध और आगे का प्लान

    भारत-रूस संबंधों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उनका रक्षा सहयोग है:

    • S-400 मिसाइल प्रणाली: अमेरिका के काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शन्स एक्ट (CAATSA) के खतरे के बावजूद, भारत ने रूस से अत्याधुनिक S-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस मिसाइल प्रणाली खरीदना जारी रखा है। कुगेलमैन ने कहा कि यह भारत की रक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपनी पसंद की प्राथमिकता को दर्शाता है।
    • साझा हित: दोनों देश बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Multi-polar World Order) के समर्थक हैं, जहाँ किसी एक महाशक्ति का वर्चस्व न हो। यह साझा दृष्टिकोण उनके संबंधों को और मजबूत करता है।

    अमेरिकी एक्स्पर्ट का आगे का आकलन

    कुगेलमैन का मानना है कि अमेरिका को भारत की नीति को समझना होगा और आगे की रणनीति में बदलाव करना होगा:

    • भारत को दबाव में न लाना: अमेरिका को यह स्वीकार करना होगा कि भारत कभी भी ‘या तो हम या रूस’ वाली स्थिति को स्वीकार नहीं करेगा। भारत एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है और उसे रूस से दूरी बनाने के लिए मजबूर करने की कोशिश से रिश्ते खराब हो सकते हैं।
    • वास्तविकता स्वीकारना: अमेरिका को इस वास्तविकता को स्वीकार करना होगा कि भारत अपनी रक्षा ज़रूरतों के लिए रूस पर निर्भर है और अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेगा।

    कुगेलमैन ने निष्कर्ष निकाला कि अमेरिका को भारत के साथ सहयोग के अन्य क्षेत्रों, जैसे इंडो-पैसिफिक में चीन के मुकाबले, पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बजाय इसके कि वह रूस के साथ भारत के संबंधों को तोड़ने की कोशिश करे।

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