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    पाकिस्तान के लिए नासूर बने TTP और BLA, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में लड़ाई

    पाकिस्तान के दो प्रमुख सूबे बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा (KP)—गहन हिंसा और विद्रोह के केंद्र बने हुए हैं। दोनों ही क्षेत्रों में सक्रिय अलगाववादी और आतंकी समूह पाकिस्तान सेना और सरकार के लिए बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं, जिससे सेना प्रमुख असीम मुनीर के लिए गंभीर सुरक्षा संकट पैदा हो गया है। इन दोनों प्रांतों में से कौन सा सूबा पहले ‘आज़ाद’ हो सकता है, इस पर राजनीतिक और सुरक्षा विशेषज्ञ लगातार चर्चा कर रहे हैं।

    सेना प्रमुख असीम मुनीर के लिए ‘नासूर’ बने समूह

    पाकिस्तान में अशांति बढ़ाने के लिए दो प्रमुख समूह जिम्मेदार हैं:

    1. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP): यह समूह मुख्य रूप से खैबर पख्तूनख्वा (KP) में सक्रिय है। TTP अपनी मांगों को लेकर पाकिस्तान की सेना और पुलिस को लगातार निशाना बना रहा है। इनका उद्देश्य पाकिस्तान में इस्लामी शरिया कानून लागू करना और KP के कुछ हिस्सों में अपनी सत्ता स्थापित करना है।
    2. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA): यह एक प्रमुख बलूच राष्ट्रवादी अलगाववादी समूह है, जो बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए लड़ रहा है। BLA मुख्य रूप से पाकिस्तानी सुरक्षा बलों और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाता है, क्योंकि उनका मानना है कि पाकिस्तान और चीन बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर रहे हैं।

    कौन सा सूबा पहले हो सकता है आज़ाद?

    विशेषज्ञों का मानना है कि इन दोनों प्रांतों में से किसी का भी आज़ाद होना एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है, लेकिन दोनों की चुनौतियाँ अलग-अलग हैं:

    1. बलूचिस्तान (BLA)

    • प्रकृति: BLA की लड़ाई सीधी आज़ादी के लिए है। बलूच राष्ट्रवाद की भावना बहुत मजबूत है और यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों (गैस और खनिज) से भरपूर है, जिससे इसका रणनीतिक महत्व बहुत अधिक है।
    • अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: बलूच अलगाववादी अक्सर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन और शोषण का मुद्दा उठाते हैं, जिससे उन्हें कुछ अंतर्राष्ट्रीय सहानुभूति मिलती है।
    • चुनौती: हालाँकि, पाकिस्तान सरकार CPEC के कारण इस क्षेत्र पर कड़ी पकड़ बनाए रखना चाहती है और यहां सेना की भारी तैनाती है।

    2. खैबर पख्तूनख्वा (TTP)

    • प्रकृति: TTP की लड़ाई संप्रभुता के बजाय सत्ता और विचारधारा स्थापित करने की है। वे पाकिस्तान की सीमाएँ नहीं बदलना चाहते, बल्कि व्यवस्था बदलना चाहते हैं।
    • रणनीति: TTP की रणनीति मुख्य रूप से सैन्य ठिकानों और पुलिस चौकियों पर बड़े हमलों पर केंद्रित है, जिससे राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा जाती है।
    • चुनौती: TTP को अफगानिस्तान में मौजूद तालिबान से समर्थन मिलने का संदेह है, जिससे यह एक द्विपक्षीय सुरक्षा मुद्दा बन जाता है।
    • विशेषज्ञ मानते हैं कि भले ही बलूचिस्तान में आजादी की माँग अधिक भावनात्मक और स्पष्ट है, लेकिन TTP का KP में हिंसा का बढ़ता स्तर पाकिस्तानी राज्य की प्रशासनिक और सुरक्षा मशीनरी के लिए अधिक तात्कालिक और आंतरिक खतरा पैदा करता है। हालाँकि, चीन के हितों के कारण बलूचिस्तान पर वैश्विक नज़रें बनी हुई हैं।
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