अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) द्वारा टेस्ट मैच की पिचों की रेटिंग को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। ताजा मामला ऑस्ट्रेलिया के पर्थ स्टेडियम में खेले गए एक टेस्ट मैच से जुड़ा है, जो सिर्फ दो दिन में समाप्त हो गया था, लेकिन आईसीसी मैच रेफरी ने इस पिच को ‘बहुत अच्छा’ (Very Good) करार दिया है। वहीं, अक्सर भारतीय उपमहाद्वीप की ऐसी पिचों को, जहाँ मैच तीन या चार दिन चलते हैं, केवल ‘संतोषजनक’ (Satisfactory) या उससे भी बुरा दर्जा दिया जाता है।
पर्थ पिच पर विवाद
- यह विवादित मैच एशेज सीरीज (Ashes Series) के दौरान पर्थ में खेला गया था।
- पिच की अत्यधिक घास और असमान उछाल के कारण मैच केवल दो दिन में ही समाप्त हो गया था। यह टेस्ट इतिहास में सबसे छोटे मैचों में से एक था।
- मैच रेफरी ने अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में इस खतरनाक, सीमिंग ट्रैक को ‘बहुत अच्छा’ (Very Good) रेटिंग दे दी।
यह रेटिंग क्रिकेट जगत को हैरान कर रही है, क्योंकि जब कोई मैच दो दिन में खत्म हो जाता है, तो यह आमतौर पर बल्ले और गेंद के बीच उचित संतुलन नहीं दर्शाता है।
भारतीय पिचों के साथ भेदभाव
क्रिकेट विशेषज्ञ और पूर्व खिलाड़ी लंबे समय से आईसीसी की पिच रेटिंग प्रणाली पर दोहरे मापदंड (Double Standards) का आरोप लगाते रहे हैं।
उदाहरण 1: भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया (नागपुर)
- भारत में खेले गए टेस्ट मैचों में, जहाँ पिचें पहले दिन से टर्न लेती हैं और स्पिनरों का दबदबा होता है, उन्हें अक्सर आलोचना का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, नागपुर की एक पिच, जिस पर भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराया था, को आईसीसी ने केवल ‘संतोषजनक’ रेटिंग दी थी।
- उदाहरण 2: दक्षिण अफ्रीका/इंग्लैंड:
- इसी तरह, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड में जब अत्यधिक हरियाली वाली पिचें होती हैं, जहाँ तेज गेंदबाजों का दबदबा रहता है और मैच जल्दी खत्म हो जाते हैं, तो उन्हें आमतौर पर ‘अच्छा’ या ‘बहुत अच्छा’ रेटिंग दी जाती है।
क्रिकेट विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के अधिकारी और कई पूर्व भारतीय क्रिकेटरों ने इस असंगति पर कड़ी आपत्ति जताई है। विशेषज्ञों का कहना है कि आईसीसी का यह रवैया स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि उपमहाद्वीप की स्पिन-अनुकूल पिचों को लेकर एक ‘पश्चिमी पूर्वाग्रह’ (Western Bias) मौजूद है।
उनकी दलील है कि टेस्ट क्रिकेट में पिच का उद्देश्य सभी खिलाड़ियों (बल्लेबाज, तेज गेंदबाज और स्पिनर) को समान अवसर प्रदान करना होना चाहिए। एक पिच जो 1500 से कम गेंदों में खत्म हो जाती है, वह किसी भी तरह से ‘बहुत अच्छी’ नहीं हो सकती। यह विवाद आईसीसी पर दबाव डालता है कि वह अपनी पिच रेटिंग प्रणाली की समीक्षा करे और सभी देशों के लिए एक समान और निष्पक्ष मानदंड स्थापित करे, ताकि टेस्ट क्रिकेट की भावना बनी रहे।


