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    राम मंदिर के शिखर पर फहराया जाएगा कोविदार ध्वज.. कलियुग में त्रेता युग का है गौरव

    अयोध्या में प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर के शिखर पर फहराया जाने वाला कोविदार ध्वज सनातन संस्कृति के एक गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित कर रहा है। यह ध्वज न सिर्फ मंदिर की शोभा बढ़ाएगा, बल्कि कलियुग में भक्तों को त्रेता युग के रामराज्य का आभास भी कराएगा। यह ध्वज (22 फीट लंबा और 11 फीट चौड़ा) मंदिर के 44 फीट ऊंचे ध्वजदंड पर फहराया जा रहा है, जो सदियों से विस्मृत अयोध्या के प्राचीन गौरव को फिर से स्थापित कर रहा है।

    वाल्मीकि रामायण में उल्लेख

    राम मंदिर ट्रस्ट ने इस ध्वज का चयन अयोध्या के प्राचीन राजध्वज के रूप में किया है, जिसका उल्लेख महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अयोध्या कांड में मिलता है।

    • वनवास के दौरान, जब भरत सेना लेकर भगवान राम को मनाने चित्रकूट जाते हैं, तब लक्ष्मण दूर से आती हुई सेना को देखकर संदेह व्यक्त करते हैं।
    • लक्ष्मण दूर से रथ पर लगे कोविदार चिन्ह वाले ध्वज को देखकर कहते हैं, “यह कोविदार युक्त विशाल ध्वज उसी के (भरत के) रथ पर फहरा रहा है।”
    • यह प्रसंग स्पष्ट करता है कि कोविदार वृक्ष का चिन्ह अयोध्या के राजकुल यानी रघुकुल की पहचान और प्राचीन धरोहर रहा है।

    ध्वज की विशेषताएँ

    राम मंदिर पर फहराया जाने वाला यह विशेष ध्वज केसरिया रंग का है, जो त्याग, तप और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस पर तीन प्रमुख प्रतीक अंकित हैं:

    1. सूर्य देव: भगवान राम के सूर्यवंशी होने का प्रतीक।
    2. ॐ: परम सत्य, चेतना और शाश्वतता का प्रतीक।
    3. कोविदार वृक्ष: यह अयोध्या का प्राचीन राज वृक्ष और रघुकुल के शासन का चिन्ह है। हरिवंश पुराण के अनुसार, ऋषि कश्यप ने इस वृक्ष को पारिजात और मंदार के गुणों को मिलाकर तैयार किया था।
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