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    बिहार में जीत के अंतर से ज्यादा वोट, 35 सीटों पर ‘जन सुराज’ ने बिगाड़ा खेल

    बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर (PK) की नवगठित पार्टी जन सुराज (Jan Suraaj) भले ही एक भी सीट न जीत पाई हो, लेकिन उसने राज्य की राजनीति पर गहरा असर डाला है। चुनाव नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि जन सुराज ने लगभग 35 विधानसभा सीटों पर जीत और हार का समीकरण बिगाड़ दिया। इन सीटों पर जन सुराज को मिले वोट, विजयी और उपविजेता उम्मीदवार के बीच के जीत के अंतर से कहीं ज़्यादा थे।

    ​समीकरण बिगाड़ने वाली 35 सीटें

    ​डेटा के अनुसार, जिन 35 सीटों पर जन सुराज ने निर्णायक भूमिका निभाई, उनका वितरण कुछ इस प्रकार रहा:

    • NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को 19 सीटों पर जीत मिली।
    • महागठबंधन को 14 सीटों पर जीत मिली।
    • ​AIMIM और बसपा (BSP) को एक-एक सीट मिली।

    ​इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि जन सुराज का प्रदर्शन सीधे तौर पर किसी एक गठबंधन को लाभ या हानि पहुँचाने वाला नहीं था, बल्कि इसने दोनों प्रमुख गठबंधनों के वोट बैंक में सेंध लगाई, जिससे मुकाबला अत्यधिक करीबी हो गया।

    ​वोट शेयर और जमानत ज़ब्ती

    ​जन सुराज के उम्मीदवारों की प्रतिस्पर्धात्मकता भले ही कमज़ोर रही हो, लेकिन उनका राज्यव्यापी वोट शेयर 3.44 प्रतिशत रहा। यह सीपीआई (माले) जैसे स्थापित दल के 3.05 प्रतिशत से भी अधिक है और इसने जन सुराज को वोट शेयर की रैंकिंग में सातवां स्थान दिलाया है।

    ​हालांकि, 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली जन सुराज पार्टी के लिए यह प्रदर्शन निराशाजनक भी रहा:

    • ​पार्टी 238 में से 236 सीटों पर अपनी जमानत गंवा बैठी।
    • ​पार्टी 115 सीटों पर तीसरे स्थान पर रही, जबकि एक सीट (मढ़ौरा) पर वह दूसरे नंबर पर रही।
    • ​कई सीटों पर मतदाताओं ने जन सुराज के उम्मीदवार को वोट देने के बजाय ‘नोटा’ (NOTA) को अधिक वोट दिया, जिससे पार्टी की ज़मीनी पकड़ पर सवाल उठे।

    ​PK के दावे और हकीकत

    ​प्रशांत किशोर ने चुनाव से पहले दावा किया था कि उनकी पार्टी सीटों के मामले में ‘या तो सबसे ऊपर होगी या सबसे नीचे’। हालांकि, ज़मीनी हकीकत में, व्यापक प्रचार और पदयात्रा के बावजूद, उनकी पार्टी को कोई सीट नहीं मिली।

    ​इन 35 सीटों पर जन सुराज के उम्मीदवार न होते, तो ये वोट किस पार्टी के खाते में जाते, यह कहना मुश्किल है। लेकिन यह साफ है कि प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ एक भी सीट न जीतने के बावजूद बिहार में एक नया ‘वोट फैक्टर’ बन कर उभरी है, जिसने स्थापित राजनीतिक समीकरणों को चुनौती दी है।

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