भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने बिहार चुनाव के नतीजे सामने आने के तुरंत बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सांसद आरके सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते छह साल के लिए निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई उनकी लगातार की जा रही विवादित बयानबाजी और पार्टी लाइन के विरुद्ध सार्वजनिक टिप्पणियों के कारण की गई है।
कार्रवाई के मुख्य कारण
आरके सिंह पर भाजपा ने जो कार्रवाई की है, उसके पीछे मुख्य रूप से निम्नलिखित कारण बताए गए हैं। आरके सिंह ने सार्वजनिक मंचों से अपनी ही पार्टी और गठबंधन (NDA) के नेताओं पर बेहद गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने बिहार के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी सहित कई नेताओं को ‘हत्या का आरोपी’ तक कह दिया।उन्होंने बिहार सरकार पर 62,000 करोड़ रुपये के बिजली घोटाले का आरोप लगाया। उनका दावा था कि अडाणी समूह के साथ बिजली खरीद समझौता “जनता के साथ धोखा” है और इसमें भारी वित्तीय अनियमितताएं छिपी हुई हैं।
सिंह ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया कि “ऐसे लोगों को वोट देने से अच्छा है, चुल्लू भर पानी में डूब मरना” (NDA के कुछ उम्मीदवारों के संदर्भ में)। विधानसभा चुनाव के दौरान वह शाहाबाद क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैलियों से भी नदारद रहे। आरके सिंह ने पहले ही अलग पार्टी बनाने या किसी अन्य विकल्प की तलाश करने के संकेत दिए थे, जिससे पार्टी के भीतर बगावती तेवर पैदा हुए थे।
पार्टी का रुख
भाजपा ने स्पष्ट किया है कि आरके सिंह के इन कदमों से पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचा है और उन्होंने लगातार अनुशासनहीनता दिखाई। चुनावी माहौल में अंदरूनी कलह से बचने के लिए पार्टी ने पहले चुप्पी साध रखी थी, लेकिन नतीजों के तुरंत बाद कड़ा अनुशासनात्मक कदम उठाते हुए उन्हें छह साल के लिए निष्कासित कर दिया।


