मैनपुरी जिले के सूरज तिवारी की सफलता की कहानी लाखों युवाओं के लिए एक मिसाल है जो यह सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अगर हौसला और संकल्प हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। एक भीषण ट्रेन हादसे में अपने शरीर के महत्वपूर्ण अंग खोने के बावजूद सूरज ने देश की सबसे कठिन परीक्षा UPSC सिविल सेवा परीक्षा पास कर अपनी किस्मत खुद लिखी।
जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा
सूरज तिवारी के पिता दर्जी का काम करते थे। सूरज ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मैनपुरी में पूरी की। उनकी जिंदगी में सबसे बड़ा मोड़ 24 जनवरी 2017 को आया, जब गाजियाबाद के दादरी में एक ट्रेन हादसे ने उन्हें जिंदगी भर का दर्द दे दिया: इस हादसे में उन्होंने दोनों पैर और एक हाथ खो दिए। उनके दूसरे हाथ की तीन उंगलियाँ भी कट गईं। दुर्घटना के बाद उन्हें महीनों अस्पताल में रहना पड़ा और घर आने पर वह तीन महीने तक बिस्तर पर रहे। इस हादसे के कुछ समय बाद ही उन्होंने अपने भाई को भी खो दिया, जिससे परिवार पूरी तरह से टूट गया था।
हालातों से जंग और JNU में दाखिला
इतने बड़े सदमे के बावजूद, सूरज ने न केवल खुद को संभाला बल्कि अपने परिवार को भी हिम्मत दी। उन्होंने तय किया कि वह हालातों के सामने घुटने नहीं टेकेंगे।
- 2018 में उन्होंने दिल्ली आकर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में बीए में दाखिला लिया।
- बीए पूरा करने के बाद उन्होंने 2021 में एमए में भी एडमिशन लिया।
- जेएनयू का माहौल उन्हें सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए प्रेरित करता था।
15 से 17 घंटे पढ़ाई करते थे
सूरज ने सिविल सेवा परीक्षा को पास करने का संकल्प लिया, जो कि सीमित शारीरिक क्षमता के साथ एक बड़ा लक्ष्य था। उन्होंने बिना किसी कोचिंग या अतिरिक्त क्लास के दिन-रात एक करके पढ़ाई की। वह रोज 15 से 17 घंटे पढ़ाई करते थे। उन्होंने व्हील चेयर पर बैठकर, बची हुई सिर्फ तीन उंगलियों से ही अपनी परीक्षा लिखी। UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2022 में उन्हें 917वीं रैंक हासिल हुई। सूरज की इस “सूरज जैसी उपलब्धि” के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उन्हें सार्वजनिक रूप से बधाई दी। आज सूरज तिवारी इंडियन इंफॉर्मेशन सर्विस (IIS) में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं, और उनकी कहानी देशभर के युवाओं के लिए दृढ़ संकल्प और हिम्मत का पर्याय बन चुकी है।


