केरल के मलप्पुरम की शरीफा कलतिंगल की कहानी गरीबी के जाल को तोड़कर करोड़पति बनने की एक प्रेरणादायक दास्तान है। महज ₹100 के उधार से शुरू हुआ उनका सफर आज तीन सफल होटलों की मालकिन बनने तक पहुँच चुका है।
गरीबी से संघर्ष और ₹100 का आरंभ
शरीफा का जीवन गरीबी और अभावों से भरा था। उनके पति साकीर एक पेंटर थे, और खासकर मानसून के महीनों में काम न मिलने के कारण परिवार को अक्सर भूखा रहना पड़ता था। इस मुश्किल घड़ी में, शरीफा ने अपनी पाक कला का उपयोग करके स्थिति बदलने का फैसला किया। उन्होंने अपनी एक पड़ोसी से ₹100 उधार लिए और चावल के आटे और गुड़ से केरल की स्थानीय मिठाई ‘उन्नियप्पम’ बनाना शुरू किया।
वह अपनी एक साल की बेटी को गोद में लेकर, हाथ में उन्नियप्पम के पैकेट लिए हजियारपल्ली की स्थानीय दुकानों पर बेचने के लिए चार किलोमीटर पैदल चलती थीं। शुरुआत में दुकानदारों ने हिचकिचाहट दिखाई, लेकिन जल्द ही उनके बनाए उत्पाद बिकने लगे। उन्हें स्थानीय लोग मज़ाक में ‘उन्नियप्पम इथाथा’ (बड़ी बहन) कहकर बुलाते थे, लेकिन शरीफा ने हार नहीं मानी और जल्द ही मेन्यू में पाथरी (चावल से बनी रोटी) और चपाती जैसे उत्पाद भी शामिल कर दिए।
बैंकों की अस्वीकृति और ‘कुटुम्बश्री’ का सहारा
छोटी सफलताएँ मिलने के बाद, शरीफा ने अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए एक छोटा कैटरिंग व्यवसाय शुरू करने का मन बनाया। जब वह बैंक से कर्ज लेने पहुँचीं, तो सभी बैंकों ने उन्हें मना कर दिया। उनके पास गिरवी रखने के लिए कोई संपत्ति (कोलेट्रल) नहीं थी, और बैंकों ने जोखिम लेने से इनकार कर दिया।
बैंकों की इस निराशाजनक प्रतिक्रिया के बावजूद, शरीफा ने हार नहीं मानी। उन्होंने केरल सरकार के महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम ‘कुटुम्बश्री’ से जुड़ने का फैसला किया, जो महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को मदद करता है।
मुथु कैटरिंग से होटल चेन तक का सफर
साल 2018 में, कुटुम्बश्री से उन्हें 2 लाख रुपये का कर्ज मिला। इसी पूंजी के सहारे उन्होंने अपने बेटे मुथु के नाम पर ‘मुथु कैटरिंग’ लॉन्च किया। उनका व्यवसाय तेज़ी से बढ़ा। उन्होंने बिरयानी, पाथरी और चपाती की सप्लाई शुरू कर दी।
कुटुम्बश्री की सलाह पर, उन्होंने अस्पतालों में ‘डब्बावाला’ सेवा भी शुरू की, जिसके तहत वह मरीजों को रोज़ाना लगभग 2,000 ब्रेकफास्ट और चावल का दलिया पहुंचाती थीं। यह काम इतना बढ़ गया कि उन्होंने 10 से 15 और महिलाओं को रोजगार दिया।
धीरे-धीरे, उनके पास पैसे जमा हुए और उन्होंने कोट्टक्कल शहर में एक बिक चुके होटल को खरीदने का फैसला किया। यहीं से उनकी किस्मत पलटी। उन्होंने इसी शहर में दूसरा होटल ‘पैलेस’ खोला। आज शरीफा कलतिंगल के पास कोट्टक्कल में तीन होटल हैं और उनकी कंपनियों का सालाना राजस्व पिछले वित्तीय वर्ष में ₹50 लाख से अधिक रहा है।
सफलता का प्रतिफल
46 वर्षीय शरीफा आज करोड़ों की मालकिन हैं। वह एक करोड़ रुपये से अधिक के घर में रहती हैं, उनके पास तीन वाहन हैं, और वह 40 से अधिक महिलाओं को रोजगार देती हैं। जो बैंक कभी उन्हें ₹1000 का भी लोन देने को तैयार नहीं थे, आज वही बैंक उनके व्यवसाय में निवेश करने के लिए उनके चक्कर लगा रहे हैं। शरीफा का कहना है कि वह अपनी अधिकांश कमाई व्यवसाय में पुनर्निवेश करती हैं।
शरीफा कलतिंगल की कहानी यह साबित करती है कि दृढ़ इच्छाशक्ति, कड़ी मेहनत और सही समय पर मिली छोटी सी मदद किसी भी व्यक्ति को गरीबी के जाल से निकालकर सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचा सकती है।