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    ट्रंप टैरिफ से चीन की हालत खस्ता, भारत बनेगा ग्लोबल ग्रोथ का नया इंजन

    ​दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, चीन की आर्थिक रफ्तार धीमी पड़ गई है। जुलाई-सितंबर तिमाही में चीन की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर गिरकर 4.8% पर आ गई है, जो पिछले एक साल में सबसे कम है। इस सुस्ती के मुख्य कारणों में अमेरिका के साथ बढ़ता व्यापार तनाव और देश के भीतर कमजोर होती घरेलू मांग शामिल है।

    ट्रंप के टैरिफ का असर

    चीन की अर्थव्यवस्था को धीमा करने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘टैरिफ नीति’ का बड़ा हाथ माना जा रहा है। अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर नए सिरे से 100% टैरिफ लगाने की धमकी दी है, जो पहले से लगे शुल्क के साथ कुल टैरिफ को काफी बढ़ा सकता है। इस तरह के ऊंचे आयात शुल्क से चीन का निर्यात प्रभावित होता है, जिससे उसकी मैन्युफैक्चरिंग और आर्थिक विकास की गति मंद पड़ जाती है। व्यापार युद्ध के गहराने से निर्यातकों और निवेशकों का भरोसा भी डगमगा गया है, जिसका सीधा असर चीन की आर्थिक सेहत पर दिख रहा है।

    भारत पर IMF ने यह कहा

    जहां चीन की विकास दर धीमी हुई है, वहीं भारत वैश्विक आर्थिक विकास के नए इंजन के रूप में उभरा है। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2025) में भारत ने 7.8% की प्रभावशाली वृद्धि दर दर्ज की है, जो दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने भी भारत को “वैश्विक विकास का मुख्य इंजन” बताया है।

    भारत पर क्यों टिकी है दुनिया की नजर?

    दुनिया की नजर भारत पर टिकने के कई प्रमुख कारण हैं:

    1. तेज विकास दर: भारत की 7.8% की मजबूत वृद्धि दर वैश्विक मंदी के माहौल में एक चमकता हुआ बिंदु है।
    2. घरेलू मांग: चीन के विपरीत, भारत की मजबूत घरेलू मांग इसकी अर्थव्यवस्था को वैश्विक झटकों से बचाने में मदद करती है।
    3. विनिर्माण और निर्यात में वृद्धि: ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों से विनिर्माण और रक्षा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है।
    4. निवेश का आकर्षण: अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापार तनाव के कारण कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां (MNCs) चीन से बाहर निकलकर भारत को एक वैकल्पिक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में देख रही हैं।

    ​विशेषज्ञों का मानना है कि चीन को अपनी घरेलू मांग बढ़ाने और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक प्रोत्साहन पैकेज देने की आवश्यकता होगी, जबकि भारत अपनी मजबूत बुनियादी बातों और नीतियों के दम पर वैश्विक विकास का नेतृत्व करने के लिए तैयार है।

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