टाटा समूह के संरक्षक रतन टाटा के निधन (अक्टूबर 2024) के एक साल बाद, भारत के सबसे प्रतिष्ठित कॉर्पोरेट समूह टाटा ट्रस्ट्स के भीतर गहरा विवाद सामने आया है। इस पूरे विवाद के ‘मिस्त्री’ दिवंगत साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई मेहली मिस्त्री हैं, जो ट्रस्ट के एक प्रभावशाली ट्रस्टी हैं और वर्तमान चेयरमैन नोएल टाटा (रतन टाटा के सौतेले भाई) के नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं।
यह विवाद मुख्य रूप से बोर्ड में नियुक्तियों और टाटा संस की लिस्टिंग को लेकर उपजा है।
विवाद के प्रमुख बिंदु:
- बोर्ड में नियुक्ति: मेहली मिस्त्री के गुट ने विजय सिंह (नोएल टाटा के गुट के माने जाने वाले) को टाटा संस के बोर्ड में फिर से नियुक्त करने के प्रस्ताव को रोक दिया, क्योंकि वे 75 वर्ष की आयु पार कर चुके थे। वहीं, मेहली मिस्त्री को टाटा संस बोर्ड में लाने के प्रयास को नोएल टाटा गुट ने विरोध किया।
- टाटा संस की लिस्टिंग: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने टाटा संस को ऊपरी परत की नॉन-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) के रूप में वर्गीकृत किया है, जिसके लिए इसे सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध (पब्लिक लिस्टिंग) कराना अनिवार्य है। शापूरजी पल्लोनजी (एसपी) समूह (टाटा संस में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक शेयरधारक) भी लिस्टिंग चाहता है, जबकि टाटा संस डी-रजिस्ट्रेशन की मांग कर रहा है। ट्रस्टों के कुछ सदस्य लिस्टिंग को लेकर चिंतित हैं, उनका मानना है कि इससे उनके वीटो अधिकार कम हो सकते हैं।
- दो गुटों में विभाजन: ट्रस्ट के सदस्य अब दो खेमों में बंटे हुए हैं। एक गुट नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह के साथ है, जो ‘निरंतरता’ (continuity) पर जोर देता है। दूसरा गुट मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी और अन्य का है, जो अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करता है।
यह विवाद उस समय सामने आया है जब टाटा समूह को स्थिरता की सबसे अधिक आवश्यकता है, और आंतरिक कलह पर लगाम लगाने के लिए भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों (अमित शाह और निर्मला सीतारमण) को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है। टाटा समूह के कॉर्पोरेट गवर्नेंस की छवि को इस विवाद से ठेस पहुंची है, जो 2016 में साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाए जाने के विवाद के बाद से पहली बार इतनी बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है।