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    हिमालय से बज रही खतरे की घंटी, देश के भीतर भी हैं दुश्मन : मोहन भागवत ने चेताया

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में नागपुर में आयोजित विजयदशमी उत्सव कार्यक्रम को संबोधित किया। उनके भाषण के मुख्य बिंदु देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा, आर्थिक नीति, पड़ोसी देशों की उथल-पुथल और ‘हिंदू राष्ट्र’ की संकल्पना पर केंद्रित थे। मोहन भागवत ने हिमालय की वर्तमान स्थिति को भी चेतावनी की घंटी बताया और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि को देखते हुए विकास के निर्णयों पर पुनर्विचार करने की अपील की।


    राष्ट्रीय विभूतियों का स्मरण

    • गुरु तेग बहादुर जी: भागवत ने इस वर्ष को गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान का 350वां वर्ष बताया और उन्हें ‘हिंद की चादर’ कहकर सांप्रदायिक सद्भाव के लिए उनका सर्वोच्च बलिदान याद किया।
    • महात्मा गांधी: 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में उनके अविस्मरणीय योगदान का जिक्र किया और उन्हें स्वतंत्रता के बाद भारत कैसा हो इस पर विचार देने वाला दार्शनिक नेता बताया।
    • लाल बहादुर शास्त्री: उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री को भी याद किया, जो “भक्ति, देश सेवा के उत्तम उदाहरण” हैं।

    सुरक्षा और आतंकवाद पर सख्त रुख

    • पहलगाम हमला: संघ प्रमुख ने पहलगाम हमले का जिक्र किया, जहां सीमा पार से आए आतंकवादियों ने 26 भारतीयों का धर्म पूछकर उनकी हत्या कर दी थी।
    • करारा जवाब: उन्होंने कहा कि सरकार और सशस्त्र बलों ने पूरी तैयारी के साथ करारा जवाब दिया। सरकार का समर्पण, सशस्त्र बलों का पराक्रम और समाज में एकता ने एक आदर्श वातावरण प्रस्तुत किया।
    • आंतरिक खतरा: उन्होंने चेतावनी दी कि देश के भीतर भी ऐसे असंवैधानिक तत्व हैं जो देश को अस्थिर करने का प्रयास करते हैं।

    स्वदेशी और आर्थिक नीति पर जोर

    • वैश्विक निर्भरता: भागवत ने कहा कि हमें मौजूदा वैश्विक आर्थिक प्रणाली पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रहना चाहिए। उन्होंने अमेरिका की टैरिफ नीति का उदाहरण दिया, जिसकी मार सभी पर पड़ रही है।
    • स्वदेशी की अपील: उन्होंने स्वदेशी और स्वावलंबी जीवन जीने की अपील की, ताकि आर्थिक निर्भरता मजबूरी में न बदल जाए। उन्होंने कहा कि राजनयिक और आर्थिक संबंध दुनिया के साथ रखने पड़ेंगे, लेकिन उन पर पूरी तरह निर्भरता नहीं रहेगी।
    • नैतिक विकास: उन्होंने भौतिक विकास के साथ-साथ नैतिक विकास की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना है कि अमेरिका जैसा भौतिक विकास का मॉडल भारत के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इसमें मानवता के विकास की दृष्टि का अभाव है।

    पड़ोसी देशों की उथल-पुथल और क्रांति

    • हिंसा से चिंता: उन्होंने पड़ोसी देशों में हिंसक उथल-पुथल होने पर चिंता व्यक्त की, क्योंकि भारत का उनके साथ आत्मीयता का संबंध है।
    • क्रांति की आलोचना: भागवत ने कहा कि हिंसक विरोध प्रदर्शनों से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होता, बल्कि देश के बाहर बैठी शक्तियों को अपना खेल खेलने का मंच मिल जाता है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन हमेशा प्रजातांत्रिक मार्गों से आता है, हिंसा से नहीं।
    • जनता और सरकार: उन्होंने कहा कि जब सरकार जनता से दूर रहती है और उनके हित में नीतियां नहीं बनाती, तो लोग सरकार के खिलाफ हो जाते हैं।

    हिंदू राष्ट्र और विश्व कल्याण

    • युवा पीढ़ी में आशा: उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया अराजकता के माहौल में भारत की ओर आशा की किरण के रूप में देखती है। उन्होंने युवा पीढ़ी में देश और संस्कृति के प्रति प्रेम बढ़ने की बात कही।
    • धर्म की दृष्टि: संघ प्रमुख ने दोहराया कि दुनिया को ‘धर्म की दृष्टि’ देनी होगी। यह धर्म पूजा या खान-पान नहीं है, बल्कि ‘सभी को साथ लेकर चलने वाला और सभी का कल्याण करने वाला’ धर्म है।
    • समाज में बदलाव: उन्होंने कहा कि व्यवस्थाएं मनुष्य बनाता है, इसलिए सही विकास के लिए पहले समाज के आचरण में बदलाव आना चाहिए। उन्होंने धीरे-धीरे परिवर्तन करने और अपना खुद का विकास पथ बनाकर दुनिया के सामने रखने की बात कही।
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