ओडिशा के एक गरीब आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले भाई-बहन, विभीषण और मोनालिसा प्रधान, ने अपने असाधारण संघर्ष और दृढ़ संकल्प से एक ऐसी मिसाल कायम की है जो सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। मवेशी चराते हुए पढ़ाई करने से लेकर देश के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज तक का उनका सफर बताता है कि सच्ची लगन के सामने कोई भी बाधा टिक नहीं सकती।
गरीब परिवार में हुआ जन्म
विभीषण और मोनालिसा प्रधान का जन्म ओडिशा के सिकाबडी गाँव के एक बेहद गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके परिवार में वे कुल सात भाई-बहन हैं। अत्यंत सीमित संसाधनों और अभावों के बावजूद, इन दोनों ने यह ठान लिया था कि उन्हें अपना भविष्य बदलना है।
मवेशी चराते हुए पढ़ाई और संघर्ष
परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा सकें। इसलिए, विभीषण और मोनालिसा को मवेशी चराने जैसे काम में भी हाथ बँटाना पड़ता था। अपनी जिम्मेदारियों के बीच भी, उन्होंने अपनी पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी। दोनों ने साथ मिलकर संघर्ष किया और एक-दूसरे का सहारा बने रहे।
बाद में, भाई की पढ़ाई जारी रखने और घर के खर्च में सहयोग देने के लिए, बहन मोनालिसा ने एक दुकान में काम करना शुरू कर दिया। इस तरह, उनके संघर्ष और सहयोग की यह यात्रा जारी रही, जिसने उन्हें सफलता के शिखर तक पहुंचाया।
सफलता की नई इबारत
इन दोनों भाई-बहनों ने साबित कर दिया कि गरीबी या सामाजिक पृष्ठभूमि किसी की प्रतिभा को रोक नहीं सकती।
- विभीषण प्रधान: आज विभीषण एमबीबीएस के चौथे वर्ष के छात्र हैं। उनका मेडिकल कॉलेज तक का सफर उनके शुरुआती संघर्षों की गवाही देता है।
- मोनालिसा प्रधान: अपनी कड़ी मेहनत और लगन के दम पर, मोनालिसा ने हाल ही में नीट (NEET) परीक्षा पास कर ली है। उन्होंने अपने भाई के ही कॉलेज में दाखिला लिया है, जिससे उनकी खुशी दोगुनी हो गई है।
मोनालिसा और विभीषण प्रधान की यह कहानी उन लाखों युवाओं के लिए एक बड़ा संदेश है जो गरीबी या चुनौतियों के कारण अपने सपनों को छोड़ देते हैं। उन्होंने दिखाया कि यदि आप लगन से प्रयास करें और संघर्ष करें, तो आप मवेशी चराने वाले एक साधारण परिवार से उठकर भी मेडिकल कॉलेज जैसे प्रतिष्ठित संस्थान तक पहुँच सकते हैं।