More
    HomeHindi Newsअंतरिक्ष में तैरना ही 'गिरना' है.. शुभांशु शुक्ला ने साझा किए अपने...

    अंतरिक्ष में तैरना ही ‘गिरना’ है.. शुभांशु शुक्ला ने साझा किए अपने अनुभव


    अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने ‘एक्स’ (पहले ट्विटर) पर अपने अनुभव साझा करते हुए एक रोचक तथ्य बताया है: अंतरिक्ष में हम जो कुछ भी तैरता हुआ देखते हैं, वह वास्तव में ‘गिर रहा’ होता है। उन्होंने इस बात को समझाने के लिए एक वीडियो भी शेयर किया, जिसमें वह कैमरे का लेंस छोड़ते हैं और वह नीचे गिरने के बजाय तैरने लगता है।

    शुभांशु शुक्ला बताते हैं कि जब वह पहली बार अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पहुँचे, तो उनके मन में भी यही सवाल था कि अगर वह किसी वस्तु को छोड़ेंगे, तो क्या वह गिर जाएगी? पृथ्वी पर ऐसा ही होता है, लेकिन अंतरिक्ष में चीजें तैरती हैं। उनकी शुरुआती प्रवृत्ति यह थी कि वह चीजों को छोड़ने के बजाय अपने क्रू-मेट्स को पकड़ा दें, जो कि एक तरह का ‘हॉट पोटैटो’ गेम बन गया था।


    न्यूटन का विचार प्रयोग

    शुक्ला ने इस घटना को आइज़ैक न्यूटन के प्रसिद्ध विचार प्रयोग से जोड़ा है। न्यूटन ने कल्पना की थी कि अगर आप एक ऊँचे पहाड़ से एक गेंद फेंकते हैं:

    • धीरे से फेंकने पर: वह पास में ही गिरती है।
    • जोर से फेंकने पर: वह और दूर जाकर गिरती है।
    • इतनी तेज़ी से फेंकने पर: वह इतनी तेज़ी से गिरती है कि पृथ्वी की सतह भी उसकी वक्रता के साथ मुड़ जाती है। इस तरह, गेंद कभी भी जमीन से नहीं टकराती और लगातार पृथ्वी के चारों ओर घूमती रहती है।

    शुभांशु शुक्ला के अनुसार, यही प्रक्रिया कक्षा (Orbit) में होती है। अंतरिक्ष यात्री और उनके आसपास की हर वस्तु, जैसे कि कैमरे का लेंस, पृथ्वी के चारों ओर एक ही गति से ‘गिर रही’ होती है। चूंकि सभी वस्तुएं एक ही गति से गिर रही हैं, इसलिए उनके बीच कोई सापेक्षिक गिरावट नहीं होती, और वे एक दूसरे के सापेक्ष तैरती हुई प्रतीत होती हैं।

    गुरुत्वाकर्षण गायब नहीं हुआ

    लोग अक्सर मानते हैं कि अंतरिक्ष यात्री भारहीन इसलिए महसूस करते हैं क्योंकि वहाँ गुरुत्वाकर्षण नहीं होता। लेकिन शुभांशु शुक्ला बताते हैं कि यह धारणा गलत है। ISS में भी गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की सतह के गुरुत्वाकर्षण का लगभग 90% होता है। वे भारहीन इसलिए महसूस करते हैं क्योंकि वे और उनके आसपास की हर चीज़ लगातार एक साथ मुक्त गिरावट (free fall) की स्थिति में होती है। अंत में, शुभांशु शुक्ला कहते हैं कि अंतरिक्ष में तैरना वास्तव में हमेशा के लिए ‘गिरना’ ही है

    RELATED ARTICLES

    Most Popular

    Recent Comments