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    फलस्तीन को मान्यता यानि हमास का भयानक अत्याचार.. ट्रंप ने UNGA में चेताया


    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पश्चिमी देशों द्वारा फलस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने के कदमों की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि ऐसे फैसले हमास जैसे आतंकवादी समूहों के “भयानक अत्याचारों” को बढ़ावा देंगे।

    ट्रंप ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में अपने संबोधन में कहा कि दुनिया को इस समय गाजा में बंधक बनाए गए लोगों की रिहाई पर ध्यान देना चाहिए। लगभग दो साल पहले हमास ने इजराइल पर हमला करके इन लोगों को बंधक बना लिया था।

    पश्चिमी देशों की नाराजगी और अमेरिका का विरोध

    हाल ही में फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल जैसे कई पश्चिमी देशों ने फलस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दी है। ये कदम इजराइल की गाजा में सैन्य कार्रवाई के विरोध में उठाए गए हैं। हालांकि, इन फैसलों से इजराइल और उसके सबसे बड़े सहयोगी अमेरिका में नाराजगी है।

    ट्रंप ने कहा कि फलस्तीन को मान्यता देना हमास के आतंकवादियों को “इनाम” देने जैसा है। उन्होंने सभी देशों से एकजुट होकर बंधकों की तत्काल रिहाई की मांग करने का आह्वान किया।


    मुस्लिम देशों के नेताओं से ट्रंप की मुलाकात

    ट्रंप ने यूएनजीए के दौरान कई मुस्लिम बहुल देशों के नेताओं से भी मुलाकात की, जिनमें सऊदी अरब, यूएई, कतर, मिस्र, जॉर्डन, तुर्किये, इंडोनेशिया और पाकिस्तान शामिल हैं। इस बैठक में गाजा की स्थिति, बंधकों की रिहाई, युद्ध को समाप्त करने और इजराइल के हटने के बाद गाजा में शासन व्यवस्था पर चर्चा हुई।

    ट्रंप ने इस बैठक को “बहुत सफल” बताया और कहा कि गाजा को लेकर हुई चर्चा बहुत अच्छी रही।


    इजराइल का सबसे मजबूत सहयोगी अमेरिका

    गाजा में इजराइल की सैन्य कार्रवाई पर वैश्विक आलोचना के बावजूद, अमेरिका लगातार उसका सबसे मजबूत सहयोगी बना हुआ है। अमेरिका ने न्यूयॉर्क में फ्रांस और सऊदी अरब द्वारा आयोजित एक शिखर सम्मेलन का भी बहिष्कार किया था, जिसमें दर्जनों विश्व नेता फलस्तीन को मान्यता देने पर चर्चा कर रहे थे।

    वहीं, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने फलस्तीन को मान्यता देने के इन कदमों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि यह “द्वि-राष्ट्र समाधान” की ओर एक स्पष्ट रास्ता है, जिसमें एक स्वतंत्र और संप्रभु फलस्तीनी राष्ट्र का निर्माण शामिल है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण सदस्यता के लिए सुरक्षा परिषद की मंजूरी आवश्यक है, जहां अमेरिका के पास वीटो पावर है।

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