बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बजने वाला है और राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इस बार का चुनाव ‘मां के अपमान’ और ‘वोट चोरी’ जैसे भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता नजर आ सकता है, जिसने राजनीतिक घमासान को और तेज कर दिया है।
‘मां के अपमान’ का मुद्दा: मोदी का भावनात्मक दांव
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मां के खिलाफ कथित तौर पर की गई अभद्र टिप्पणी को लेकर विपक्ष पर तीखा हमला बोला। उन्होंने इसे सिर्फ अपनी मां का अपमान नहीं, बल्कि बिहार की हर मां और बेटी का अपमान बताया। इस मुद्दे को उन्होंने छठ पूजा और नवरात्रि जैसे त्योहारों से जोड़कर भावनात्मक रूप से उठाया, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और महिला मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करना है। भाजपा और एनडीए ने इस मुद्दे को लेकर आक्रामक रुख अपनाया है और ‘मां का सम्मान’ को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बना दिया है। भाजपा का मानना है कि मां के सम्मान का मुद्दा न केवल भावनात्मक है, बल्कि यह महिलाओं के बीच उनकी पकड़ को भी मजबूत करेगा, जो बिहार में एक बड़ा वोट बैंक हैं।
‘वोट चोरी’ और ‘एसआईआर’ का मुद्दा: विपक्ष की पलटवार
दूसरी ओर, महागठबंधन, जिसमें कांग्रेस और राजद शामिल हैं, ‘एसआईआर’ (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) यानी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का मुद्दा उठा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के तहत गरीब और वंचित वर्ग के मतदाताओं के नाम जानबूझकर हटाए जा रहे हैं, जो एक तरह से ‘वोट चोरी’ है। कांग्रेस और राजद का कहना है कि यह भाजपा की एक सुनियोजित साजिश है, जिसका उद्देश्य चुनाव में धांधली करना है। राहुल गांधी ने भी अपनी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है और कहा है कि वे वास्तविक मतदाताओं को मतदाता सूची में बनाए रखने की मांग करेंगे। विपक्ष का मानना है कि एसआईआर से बड़ी संख्या में गरीब और वंचित वर्ग के लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया जा रहा है, जिससे उनका वोट देने का अधिकार छीना जा रहा है।
क्या एसआईआर सिर्फ ‘वोट चोरी’ है?
एसआईआर एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है, जिसमें मृत या डुप्लिकेट मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं और नए मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं। हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा है। उनका कहना है कि कई ऐसे लोगों के नाम भी हटा दिए गए हैं, जो अभी भी जीवित हैं और बिहार में रह रहे हैं। इसके अलावा, कांग्रेस ने सरकार की जीएसटी नीति पर भी सवाल उठाए हैं, जिसमें बीड़ी पर टैक्स घटाने की बात कही गई थी, जिसे भाजपा ने ‘बिहारियों का अपमान’ बताया है।
महिलाओं पर केंद्रित चुनावी लड़ाई
कुल मिलाकर, बिहार का आगामी विधानसभा चुनाव मुख्य रूप से महिलाओं पर केंद्रित होता दिख रहा है। एक तरफ जहां भाजपा ‘मां के अपमान’ के मुद्दे पर महिलाओं को साधने की कोशिश कर रही है, वहीं विपक्ष ‘एसआईआर’ और ‘वोट चोरी’ के आरोपों के जरिए मतदाताओं के बीच आक्रोश पैदा करना चाहता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता किस मुद्दे को ज्यादा तरजीह देती है – ‘मां का अपमान’ का भावनात्मक दांव या ‘वोट चोरी’ और ‘एसआईआर’ का आरोप। चुनाव से पहले, दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी रणनीति को मजबूत करने में लगे हैं, जिससे यह चुनाव एक दिलचस्प और कांटे की टक्कर वाला साबित होने की उम्मीद है।