अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भारत के प्रति हाल का सख्त रुख अब नरम होता दिख रहा है। यह बदलाव भारत-रूस-चीन (RIC) की बढ़ती तिकड़ी, भारत के विशाल बाज़ार और कूटनीतिक दबाव का नतीजा माना जा रहा है। एक दिन पहले, अमेरिका के कई बड़े टेक दिग्गजों ने व्हाइट हाउस में हुई एक बैठक में राष्ट्रपति ट्रंप के सामने भारत के बाजार की अहमियत और भारत के साथ बिगड़ते संबंधों को लेकर गहरी चिंता जताई।
सूत्रों के अनुसार, टेक कंपनियों के प्रमुखों ने साफ शब्दों में कहा कि अगर भारत ने नेपाल की तरह कोई कड़ा कदम उठाते हुए अमेरिकी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए, तो उनके लिए कारोबार करना बेहद मुश्किल हो जाएगा और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। इस बैठक के बाद ही ट्रंप के बयानों में बदलाव देखने को मिला।
ट्रंप ने पिछले दिनों भारत पर 50 प्रतिशत तक आयात शुल्क लगाया था, जिसे उन्होंने रूस से तेल खरीद के कारण “अनुचित” बताया था। हालांकि, भारत ने इस दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया था और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को जारी रखा। भारत के इस मजबूत रुख और रूस और चीन के साथ बढ़ते सहयोग ने अमेरिका को अपनी नीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।
कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह यू-टर्न उनकी “रणनीतिक विफलता” को दर्शाता है। वे कहते हैं कि बार-बार उकसाने के बावजूद भारत ने संयम बरता और अपने राष्ट्रीय हित में काम किया। भारत की यह कूटनीतिक जीत है, जिसने यह साबित कर दिया है कि वह अब किसी के दबाव में नहीं आता। अमेरिकी राष्ट्रपति अब भारत के साथ रिश्तों को “बेहद खास” बता रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “महान प्रधानमंत्री” कह रहे हैं। यह बयानबाजी उनके पहले के सख्त बयानों से बिल्कुल अलग है।