भारत में हर साल लाखों युवा यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा देते हैं, जिसका सपना होता है आईएएस बनने का। लेकिन केरल के बी अब्दुल नासर की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए एक अनोखी और सच्ची प्रेरणा है, जिन्होंने न सिर्फ अनाथालय से निकलकर अपने जीवन का सफर तय किया, बल्कि बिना यूपीएससी की परीक्षा दिए ही आईएएस की कुर्सी हासिल की। उनका यह सफर दिखाता है कि लगन और मेहनत हो तो कोई भी बाधा मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती।
अनाथालय और संघर्ष भरा बचपन
बी अब्दुल नसर का जन्म केरल के कन्नूर जिले के थलसेरी (Thalassery, Kannur) में हुआ। बी अब्दुल नासर का बचपन बेहद कठिन था। सात साल की उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया और वह एक अनाथालय में रहने लगे। अनाथालय में रहकर उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की, लेकिन उन्हें पता था कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए सिर्फ पढ़ाई काफी नहीं है, बल्कि उन्हें खुद भी कमाना होगा। उन्होंने छोटी उम्र से ही छोटे-मोटे काम करना शुरू कर दिया। सुबह-सुबह वह घर-घर जाकर अखबार बांटते थे और शाम को एक सफाईकर्मी के तौर पर काम करते थे। इन छोटे-मोटे कामों से जो पैसे मिलते थे, उससे वह अपनी पढ़ाई और जीवन का खर्च चलाते थे।
उनके जीवन का सबसे बड़ा गुण था हार न मानने का जज्बा। इन कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और कॉलेज में दाखिला लिया।
सरकारी नौकरी का सफर और आईएएस बनने का रास्ता
डिग्री पूरी करने के बाद बी अब्दुल नासर को केरल राज्य बिजली बोर्ड में एक ग्रुप-डी कर्मचारी के तौर पर पहली सरकारी नौकरी मिली। यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन वह यहीं रुकने वाले नहीं थे। अपनी कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने आगे की पढ़ाई जारी रखी और विभाग में तरक्की करते गए। धीरे-धीरे, उन्होंने तेहसीलदार, फिर डेप्युटी कलेक्टर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम किया।
जिस तरह से उन्होंने अपने काम में उत्कृष्टता दिखाई और सालों तक राज्य सिविल सेवा में बेहतरीन प्रदर्शन किया, उसी के आधार पर उनकी पदोन्नति की गई। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में पदोन्नति के नियमों के अनुसार, राज्य सिविल सेवा के अधिकारी एक निश्चित अवधि और उत्कृष्ट प्रदर्शन के बाद सीधे आईएएस कैडर में शामिल किए जा सकते हैं। इसी नियम के तहत, बी अब्दुल नासर को 2007 में आईएएस अधिकारी के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्होंने कभी भी यूपीएससी की परीक्षा नहीं दी, लेकिन अपनी ईमानदारी, लगन और धैर्य के दम पर वह उस मुकाम तक पहुंचे, जिसका सपना लाखों युवा देखते हैं।
प्रेरणा का स्रोत
बी अब्दुल नासर की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति के सफल होने की कहानी नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि जीवन में अगर सही दिशा और अथक प्रयास हों तो किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। अनाथालय के एक बच्चे का अखबार बांटने और सफाईकर्मी बनने से लेकर देश के सबसे प्रतिष्ठित पदों में से एक पर पहुंचने का उनका सफर यह दिखाता है कि सफलता किसी परीक्षा की मोहताज नहीं होती, बल्कि वह लगन और मेहनत की कमाई होती है। उनका जीवन आज लाखों युवाओं को प्रेरित कर रहा है कि अपने सपनों को कभी छोड़ना नहीं चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी मुश्किल क्यों न हों।