रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देश लगातार प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस मुद्दे पर अपने विचार सामने रखे हैं। हालांकि, कई विश्लेषकों का मानना है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस संघर्ष को जिस तरह से नियंत्रित किया है, उसके आगे ट्रंप और पश्चिमी देशों की रणनीति विफल हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि भले ही कोई शांति समझौता हो जाए, लेकिन यूक्रेन को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी और उसके हाथ खाली ही रहेंगे।
पुतिन की रणनीति: धीरे-धीरे यूक्रेन को कमजोर करना
पुतिन ने इस युद्ध को एक लंबा और थका देने वाला संघर्ष बना दिया है। इस धीमी गति के युद्ध का उद्देश्य यूक्रेन की सेना और अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से कमजोर करना है, ताकि वह अंततः रूस की शर्तों पर झुकने के लिए मजबूर हो जाए। पश्चिमी देशों द्वारा दी जा रही सहायता भी यूक्रेन की स्थिति को पूरी तरह से नहीं बदल पा रही है।
शांति समझौते का असली चेहरा
ट्रंप ने संकेत दिया है कि अगर वह सत्ता में आते हैं, तो वह 24 घंटे में शांति समझौता करवा देंगे। हालांकि, उनके बयान से ऐसा लगता है कि यह समझौता यूक्रेन के पक्ष में नहीं होगा। ट्रंप ने कहा है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं होना चाहिए और उसे क्रीमिया भी वापस नहीं मिलेगा। इसका मतलब है कि यूक्रेन को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ समझौता करना पड़ेगा।
पश्चिमी देशों की दुविधा
पश्चिमी देश यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक मदद दे रहे हैं, लेकिन वे सीधे रूस के साथ सैन्य टकराव नहीं चाहते हैं। यह दुविधा पुतिन के लिए फायदेमंद साबित हुई है। पुतिन जानते हैं कि पश्चिमी देश एक निश्चित सीमा से आगे नहीं जाएंगे, जिससे उन्हें अपनी शर्तों को मनवाने में मदद मिलती है।
इन सब कारणों से ऐसा लगता है कि भले ही कोई शांति समझौता हो, लेकिन यूक्रेन को अपनी बहुत सी जमीन और राजनीतिक लक्ष्यों को छोड़ना पड़ेगा। अंत में, इस युद्ध का परिणाम पुतिन की शर्तों पर ही तय होगा, और यूक्रेन के लिए यह एक कड़वी हार साबित हो सकती है।


