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    कैसे होगा अगले उपराष्ट्रपति का चुनाव, बाकी चुनावों से कितना अलग? जानें सबकुछ

    भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने देश में अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया को सामने ला दिया है। संविधान के अनुसार, यह पद रिक्त होने पर जल्द से जल्द चुनाव कराना अनिवार्य है। आइए जानते हैं कैसे होता है यह चुनाव और यह आम चुनावों से कितना अलग है।

    कौन करता है उपराष्ट्रपति का चुनाव?

    उपराष्ट्रपति का चुनाव एक ‘निर्वाचक मंडल’ (Electoral College) द्वारा किया जाता है। इस निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों, यानी लोकसभा और राज्यसभा के सभी सदस्य शामिल होते हैं। इसमें लोकसभा के निर्वाचित सदस्य, राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य और राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी शामिल होते हैं। यह एक महत्वपूर्ण अंतर है, क्योंकि राष्ट्रपति के चुनाव में केवल संसद के निर्वाचित सदस्य और राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ही वोट डालते हैं।

    चुनाव प्रक्रिया:

    1. अनुपातित प्रतिनिधित्व प्रणाली: उपराष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System) के अनुसार ‘एकल संक्रमणीय मत’ (Single Transferable Vote) द्वारा होता है। इसमें मतदाता (सांसद) अपनी पसंद के अनुसार उम्मीदवारों को प्राथमिकता देते हैं।
    2. गुप्त मतदान: मतदान गुप्त होता है, यानी सांसद अपनी पसंद को सार्वजनिक नहीं करते।
    3. नामांकन: उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को कम से कम 20 सांसदों द्वारा प्रस्तावित और 20 सांसदों द्वारा समर्थित होना चाहिए। साथ ही, उन्हें ₹15,000 की जमानत राशि जमा करनी होती है।
    4. रिटर्निंग ऑफिसर: लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव बारी-बारी से इस चुनाव के लिए रिटर्निंग ऑफिसर के रूप में कार्य करते हैं।
    5. मतों की गिनती: मतों की गिनती के बाद, उम्मीदवारों को उनकी प्राथमिकता के अनुसार मतों का आवंटन किया जाता है। जिस उम्मीदवार को निर्धारित ‘कोटा’ (जीतने के लिए आवश्यक मतों की संख्या) पूरा करने के लिए पर्याप्त मत प्राप्त होते हैं, वह उपराष्ट्रपति चुने जाते हैं।

    आम चुनावों से अंतर:

    • मतदाता: आम चुनावों में देश के सभी वयस्क नागरिक मतदान करते हैं, जबकि उपराष्ट्रपति चुनाव में केवल संसद सदस्य ही मतदाता होते हैं।
    • मत मूल्य: आम चुनावों में हर वोट का मूल्य समान होता है, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव की तरह ही उपराष्ट्रपति चुनाव में भी मतों का एक निश्चित मूल्य निर्धारित किया जाता है (हालांकि राष्ट्रपति चुनाव की तरह राज्यों के विधायकों के मत मूल्य भिन्न नहीं होते, यहां हर सांसद के मत का मूल्य एक समान होता है)।
    • प्रणाली: आम चुनावों में ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ प्रणाली (सबसे ज्यादा वोट पाने वाला जीतता है) का उपयोग होता है, जबकि उपराष्ट्रपति चुनाव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत का उपयोग होता है।
    • राज्य विधानसभाओं की भूमिका: आम चुनावों में राज्य विधानसभाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है (विधायक भी मतदान करते हैं), जबकि उपराष्ट्रपति चुनाव में उनका कोई रोल नहीं होता।

    अगला चुनाव कब?

    संविधान के अनुच्छेद 68 में प्रावधान है कि उपराष्ट्रपति के पद में रिक्ति (इस्तीफा, मृत्यु, निष्कासन) होने पर, रिक्ति को भरने के लिए जल्द से जल्द चुनाव कराया जाना चाहिए। चुनाव आयोग जल्द ही चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करेगा। नए निर्वाचित उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तारीख से पूरे पांच साल के लिए पद धारण करेंगे।

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