यमन में फंसी केरल की नर्स निमिषा प्रिया का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है, जिसने यमन की कठोर कानूनी प्रणाली और वहां की रोंगटे खड़े कर देने वाली ‘किसास’ (Qisas) या ‘बदले’ की सजाओं पर दुनिया का ध्यान खींचा है। निमिषा को एक यमनी नागरिक की हत्या के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई है, और अब उसकी जान बचाने के लिए पीड़ित परिवार को ‘ब्लड मनी’ देने की कोशिशें चल रही हैं।
यमन में इस्लामिक शरिया कानून का प्रभाव है, और ‘किसास’ इसका एक प्रमुख सिद्धांत है। ‘किसास’ का अर्थ है ‘बदले का न्याय’ या ‘जैसे को तैसा’। इसमें अपराध के लिए वही सजा दी जाती है जो पीड़ित को हुई क्षति के समान हो। उदाहरण के लिए:
- हत्या के बदले हत्या: यदि किसी की हत्या की जाती है, तो दोषी को भी मौत की सजा दी जा सकती है।
- आंख के बदले आंख: यदि किसी व्यक्ति की आंख को नुकसान पहुंचाया गया है, तो अपराधी की आंख को भी नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
- दांत के बदले दांत: इसी तरह दांत या अन्य शारीरिक अंगों को नुकसान पहुंचाने पर भी समान प्रतिकार का प्रावधान है।
हालांकि, ‘किसास’ के तहत पीड़ित परिवार को यह अधिकार भी होता है कि वे अपराधी को माफ कर दें या फिर ‘डियाह’ (Diyah) या ‘ब्लड मनी’ (खून का पैसा) स्वीकार कर लें। यही वो रास्ता है जिसके जरिए निमिषा की जान बचाने की कोशिशें हो रही हैं।
यमन की न्याय प्रणाली में अक्सर सार्वजनिक फांसी, पत्थरबाजी और शारीरिक दंड जैसी क्रूर सजाएं भी देखने को मिलती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां हूती विद्रोहियों का प्रभाव अधिक है। देश में चल रहे गृहयुद्ध और राजनीतिक अस्थिरता ने कानूनी ढांचे को और भी जटिल बना दिया है।
निमिषा प्रिया को 2017 में अपने यमनी पति तलल अब्दो महदी की हत्या का दोषी ठहराया गया था। निमिषा का कहना है कि उसने आत्मरक्षा में ऐसा किया था, क्योंकि वह लगातार प्रताड़ित हो रही थी और उसके पति ने उसके पासपोर्ट सहित सभी दस्तावेज जब्त कर लिए थे। उसकी रिहाई के लिए भारतीय समुदाय और सरकार लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यमन के कानून और वहां की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह एक बेहद जटिल और मुश्किल लड़ाई है।


