सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि पति या पत्नी द्वारा अपने साथी की गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत को अदालत में साक्ष्य के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है, बशर्ते वह रिकॉर्डिंग कानूनी प्रक्रिया के तहत प्राप्त की गई हो और उसकी सत्यता प्रमाणित हो। इस ‘सुप्रीम’ टिप्पणी का वैवाहिक मामलों और उनके निपटारे पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट के समक्ष एक ऐसा मामला था जिसमें पत्नी ने पति पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए कुछ रिकॉर्डिंग पेश की थीं, जिन्हें पति ने अवैध रूप से रिकॉर्ड किया गया बताया था। निचली अदालतों और उच्च न्यायालय ने इन रिकॉर्डिंग को निजता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए साक्ष्य के तौर पर स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा, “जब किसी वैवाहिक विवाद में सच्चाई का पता लगाना सर्वोपरि हो, तो गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। यदि रिकॉर्डिंग की प्रामाणिकता साबित होती है और वह सबूत के तौर पर प्रासंगिक है, तो इसे स्वीकार किया जा सकता है।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रिकॉर्डिंग को स्वीकार करने से पहले अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसे किसी अवैध या अनैतिक तरीके से प्राप्त नहीं किया गया हो, जिससे दूसरे पक्ष के मौलिक अधिकारों का हनन होता हो।
अदालत ने जोर दिया कि ‘निजता का अधिकार’ महत्वपूर्ण है, लेकिन यह किसी भी कीमत पर न्याय प्राप्त करने में बाधा नहीं बन सकता, खासकर ऐसे मामलों में जहाँ एक पक्ष को अपने आरोपों को साबित करने के लिए ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है। इस फैसले से उन व्यक्तियों को राहत मिल सकती है जो अपने वैवाहिक विवादों में सबूत इकट्ठा करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे थे। यह फैसला पति-पत्नी के बीच संबंधों में पारदर्शिता लाने और वैवाहिक विवादों को निपटाने में अधिक प्रभावी ढंग से सहायता कर सकता है। हालांकि, इसने सबूतों की प्रामाणिकता और उनकी प्राप्ति के तरीके पर अदालतों के लिए एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी डाल दी है।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि पति-पत्नी के बीच गुप्त बातचीत साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के तहत संरक्षित है और इसका इस्तेमाल न्यायिक कार्यवाही में नहीं किया जा सकता।