भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक और दूरगामी फैसला लेते हुए अपने स्टाफ में सीधी भर्ती के लिए पहली बार आरक्षण नीति लागू करने की घोषणा की है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि अगर सभी सरकारी संस्थानों और विभिन्न उच्च न्यायालयों में आरक्षण नीति लागू है तो फिर सुप्रीम कोर्ट को ही क्यों अपवाद रखा जाए? यह निर्णय देश की शीर्ष न्यायिक संस्था में सामाजिक न्याय और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इस नई नीति के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने सीधी भर्ती के पदों में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के भीतर स्टाफ की सीधी भर्तियों में आरक्षण लागू न होने की पुरानी प्रथा को समाप्त करता है, जिसके लिए लंबे समय से मांग उठ रही थी।
सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से जारी एक अधिसूचना में इस नीति के विस्तृत विवरण की जानकारी दी गई है। यह स्पष्ट किया गया है कि आरक्षण के प्रावधान सरकार द्वारा निर्धारित मौजूदा नियमों और प्रतिशत के अनुसार ही लागू होंगे। इस फैसले से न्यायिक संस्थाओं में भी विविधता और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की दिशा में एक मिसाल कायम होगी, जो अभी तक इस मामले में काफी पीछे मानी जाती थीं।
इस ऐतिहासिक निर्णय का व्यापक स्तर पर स्वागत किया जा रहा है। सामाजिक न्याय के पैरोकारों, विभिन्न राजनीतिक दलों और नागरिक समाज संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस प्रगतिशील कदम की सराहना की है। उनका कहना है कि यह निर्णय न केवल शीर्ष न्यायिक संस्था में वंचित वर्गों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाएगा, बल्कि यह अन्य सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा। यह भारत के संविधान में निहित समानता और न्याय के सिद्धांतों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो देश के लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है।