मध्य पूर्व में जारी इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच, अमेरिका और ईरान के बीच की मौजूदा स्थिति को लेकर कूटनीतिक गलियारों में एक नई बहस छिड़ गई है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि दोनों महाशक्तियां एक प्रकार की ‘नूराकुश्ती’ में शामिल हैं, जहां एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने के बजाय, वे ‘इज्जत बचाने’ और संदेश देने का खेल खेल रहे हैं। इस बात को तब और बल मिला जब यह खुलासा हुआ कि ईरान ने कतर में अमेरिकी एयरबेस पर हमला करने से पहले कथित तौर पर अमेरिका और कतर को इसकी जानकारी दे दी थी।
रविवार को अमेरिका द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों (नतांज, फोर्डो और इस्फहान) पर बमबारी के बाद, सोमवार को ईरान ने कतर के अल-उदैद एयरबेस पर जवाबी हमला किया। हालांकि, हैरानी की बात यह रही कि इस हमले में कोई हताहत नहीं हुआ और न ही कोई बड़ा नुकसान हुआ। अरब मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ईरान ने हमला करने से लगभग एक घंटे पहले कतर और अमेरिका को मिसाइल दागने की सूचना दे दी थी। इससे कतर को अपना एयरस्पेस बंद करने और अमेरिका को अपने हाई-वैल्यू विमानों को एयरबेस से हटाने का समय मिल गया।
डोनाल्ड ट्रंप ने खुद इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि ‘ईरानी हमला कमजोर और अपेक्षा के मुताबिक था।’ उन्होंने यह भी कहा कि उम्मीद है कि अब आगे कोई नफरत नहीं होगी। कई विशेषज्ञ इस घटना को ‘चेहरे बचाने’ की कूटनीति के रूप में देख रहे हैं। ईरान अपने परमाणु ठिकानों पर हुए हमले का जवाब देना चाहता था ताकि अपनी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और सैन्य शक्ति का प्रदर्शन कर सके। वहीं, अमेरिका, भले ही उसने ईरान पर हमला किया था, एक पूर्ण युद्ध से बचना चाहता है। ईरान द्वारा पूर्व सूचना देने से दोनों पक्षों को एक ऐसी स्थिति से बचने का मौका मिल गया जहां वास्तविक हताहत होते और संघर्ष और बढ़ सकता था।
यह स्थिति बताती है कि पर्दे के पीछे कुछ ऐसी बातचीत या समझ हो सकती है, जो सार्वजनिक बयानों से कहीं अधिक जटिल है। ट्रंप द्वारा संघर्ष विराम की घोषणा (जिसे ईरान ने हालांकि खारिज कर दिया है) भी इसी ‘नूराकुश्ती’ का हिस्सा मानी जा रही है, जहां वह शांति स्थापित करने का श्रेय लेना चाहते हैं, जबकि ईरान यह दिखाना चाहता है कि वह किसी के दबाव में नहीं आया है और उसने ‘हिसाब बराबर’ कर लिया है।