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    पाक का दोगलापन : ट्रंप के लिए मांगा नोबेल पुरस्कार.. ईरान पर हमला हुआ तो की कड़ी निंदा

    पाकिस्तान का दोगलेपन एक बार फिर उजागर हो गया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने नार्वे में नोबेल शांति पुरस्कार समिति को एक पत्र भेजा था जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पुरस्कार देने की मांग की है। वहीं अब पाकिस्तान ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हुए अमेरिकी हवाई हमलों की कड़ी निंदा की है, जबकि उनके ही सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर भी डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की वकालत कर चुके हैं। यह विरोधाभास पाकिस्तान की अस्थिर और अवसरवादी विदेश नीति को दर्शाता है। पाकिस्तान की यह दोहरी नीति अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है। एक तरफ वह शांति और स्थिरता की बात करता है, तो दूसरी तरफ वह अपने ही हितों के लिए विरोधाभासी रुख अपनाता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान इस दोगलेपन को कैसे संभालता है और भविष्य में उसकी विदेश नीति क्या दिशा लेती है।

    मुनीर का नोबेल कनेक्शन और ट्रंप की वकालत

    2020 में जब जनरल मुनीर इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के महानिदेशक के पद पर थे, उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित करने का आग्रह किया था। यह अनुरोध तब किया गया था जब ट्रंप प्रशासन अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय था। मुनीर ने उस समय ट्रंप के प्रयासों को ऐतिहासिक बताया था और कहा था कि शांति के लिए उनके समर्पण को मान्यता मिलनी चाहिए। उस दौरान पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने और अफगानिस्तान में अपनी भूमिका को बढ़ाने का इच्छुक था।

    ईरान हमले पर काकर की दोहरी नीति

    अब जब अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं, तो पाकिस्तान ने इन हमलों की कड़ी निंदा की है। बयान में कहा है कि यह कार्रवाई क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए खतरा है और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। ईरान की संप्रभुता का सम्मान करने और स्थिति को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने का आह्वान किया है।

    पाकिस्तान के दोगलेपन के पीछे की वजह

    पाकिस्तान की यह विरोधाभासी प्रतिक्रिया उसकी विदेश नीति की पुरानी कमजोरी को दर्शाती है, जहां वह अक्सर अपने तात्कालिक भू-राजनीतिक हितों के आधार पर अपनी बयानबाजी और नीतियों को बदलता रहता है। पाकिस्तान अक्सर बड़ी शक्तियों (जैसे अमेरिका, चीन और सऊदी अरब) के बीच संतुलन साधने की कोशिश करता है, जिसके कारण उसकी नीतियां अवसरवादी दिखाई देती हैं। घरेलू राजनीतिक दबाव, धार्मिक समूहों का प्रभाव और सेना का विदेश नीति पर गहरा नियंत्रण भी पाकिस्तान के रुख को प्रभावित करता है। यह घटना पाकिस्तान की उस प्रवृत्ति को दर्शाती है जहां वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है, भले ही उसमें पूर्व के बयानों से विरोधाभास क्यों न हो।

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